Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 128
________________ बदलाव कैसे आए? 119 है । इस भाषा को पढ़ने वाला ही नए समाज की रचना का सपना ले सकता है और उसे साकार कर सकता है। वर्तमान समाज की व्यवस्था क्या बुरी है? यदि बुरी है तो बुराई के कारक तत्त्व कौन-कौन हैं, अशिक्षा, गरीबी, शोषण, प्रदर्शन, हत्या, आत्महत्या, चोरी, डकैती आदि बुराइयां पुरानी समाज व्यवस्था में हैं इसलिए नई समाज व्यवस्था की रचना की कल्पना प्रिय लग रही है। क्या नई समाज व्यवस्था में ये बुराइयां नहीं होंगी? क्या कोई यह आश्वासन देने की स्थिति में है ? कार्ल मार्क्स ने समाज की नई व्यवस्था का एक ढांचा खड़ा किया था। उन्होंने कब सोचा कि उनकी विचारधारा को मानने वाले ही उसे खंडहर बना देंगे। महात्मा गांधी ने समाज व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण सूत्र दिए। यदि 'उनके आधार पर समाज की रचना होती तो समाज स्वस्थ बन जाता। ऐसा हुआ नहीं। महात्मा गांधी के अनुयायी ही उसकी असफलता के लिए अधिक जिम्मेवार हैं । असफलता के लिए किसी को जिम्मेवार ठहराना और किसी को उस जिम्मेवारी से मुक्त कर देना हमारी सामान्य प्रकृति है । विश्लेषण करने पर निष्कर्ष दूसरा ही निकलता है । कोई भी नेता किसी मुद्दे पर जनता को इकट्ठा कर सकता है। महात्मा गांधी के साथ भी वैसा ही हुआ । चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई। स्वतंत्रता के आंदोलन का आकर्षण बढ़ता गया और विजयश्री I गांधी का वरण कर लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् उनका जादुई प्रभाव कम होने लगा। उनके सहकर्मियों का ध्यान सत्ता की कुर्सी पर टिक गया। गांधी ने नए समाज की रचना के लिए अनेक विचार दिए पर सत्ता के सामने उनका मूल्य गौण हो गया। मार्क्स और गांधी ने नए समाज की रचना का शंख फूंका पर उसके लिए वे जनता की चेतना को जागृत नहीं कर सके, स्वल्प अंशों में जागृत चेतना को विस्तार और स्थायित्व नहीं दे सके। मैं फिर उस बात को दोहराना चाहता हूं कि नए समाज की रचना की चेतना को जागृत किए बिना नए समाज की रचना कभी संभव नहीं होगी। कुछ समय के लिए संभव हो भी जाए तो वह चिरकाल तक टिक नहीं पाएगी । अपेक्षा है चेतना को जागृत करने की प्रक्रिया चले । जागृति की प्रक्रिया के तीन पड़ाव हैं। पहला पड़ाव है विचार, नई व्यवस्था के लिए पुष्ट विचारों का व्यवस्थापन । दूसरा पड़ाव है विचार का संस्कार में परिवर्तन । तीसरा पड़ाव है आचार विचार और आचार की दूरी स्वाभाविक है । वीतराग मनुष्य के विचार और आचार के तट दो नहीं होते । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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