Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 121
________________ कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ? विषमता- इन दो बिन्दुओं पर टिकी हुई है। आर्थिक समानता रहेगी तो समाज में हिंसा कम होगी, अहिंसा का विकास होगा। एक ओर साम्यवादी विचारधारा के प्रवर्तक मार्क्स ने इस बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित किया तो दूसरी ओर अहिंसा के प्रबल समर्थक महात्मा गांधी ने भी इस विषय पर चिन्तन-मंथन किया । मार्क्स अहिंसा की दृष्टि से मुख्य चिन्तन-धारा में नहीं थे। गांधी के पास अहिंसा के चिन्तन के अलावा कोई विकल्प नहीं था; किन्तु दोनों का चिन्तन - बिन्दु एक रहा और वह है आर्थिक समानता । इस बिन्दु पर गांधी और मार्क्स - दोनों ने विचार किया, आर्थिक समानता की दो प्रणालियां प्रस्तुत हो गईं। 112 गांधी की प्रणाली रही ट्रस्टीशिप की और मार्क्स की प्रणाली का आधार था व्यक्तिगत स्वामित्व की समाप्ति । साम्यवाद ने प्रयोग किया व्यक्तिगत स्वामित्व को समाप्त करने का और गांधी ने प्रयोग किया ट्रस्टीशिप का । किन्तु लगता है, दोनों ही प्रयोग सफल नहीं हुए । आर्थिक समानता का प्रश्न बड़ा जटिल है । यदि हम विधायक रूप में चलें तो सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है । समानता का अर्थ क्या है ? यांत्रिक समानता या आर्थिक समानता ? समानता का आधार क्या हो ? एक परिवार में दो लड़के हैं और एक परिवार आठ लड़के हैं। समानता क्या काम आएगी ? समानता का अर्थ है - सबके पास समान धन और समान साधन । एक परिवार में केवल पति-पत्नी- दो ही सदस्य हैं और एक परिवार में दस से अधिक सदस्य हैं । इस स्थिति में आर्थिक समानता का प्रश्न कहां टिकेगा ? इस प्रणाली के सामने इतनी उलझनें आईं कि व्यक्तिगत स्वामित्व के सीमाकरण की बात सफल नहीं हो पाई । व्यक्तिगत स्वामित्व को बन्द करने का परिणाम आया- अर्थ की प्रेरणा कम हो गई, कमाने की प्रेरणा कम हो गई। आज उसे भी बदलना पड़ रहा है। ट्रस्टीशिप वाली बात जनता के गले ही नहीं उतरी। जो बने, मालिक बने, संरक्षक कोई बना ही नहीं। बड़े-बड़े उद्योगपति तथा जो गांधीजी के निकट रहने वाले थे, उन्होंने अपने लिए इसका उपयोग किया। उद्योग चले, मिलें चलीं। ऐसे मालिक और संरक्षक बने कि अपने लिए लाखों-करोड़ों की लागत से गेस्ट हाउस और बंगले बना लिए, मजदूरों के लिए झोंपड़ियां भी पूरी नहीं बनीं। आर्थिक समानता के सन्दर्भ में ट्रस्टीशिप की बात भी सफल नहीं हुई । अपरिग्रह : इच्छा परिमाण हमें मूल बिन्दु को पकड़ना होगा। भगवान महावीर की वाणी में वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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