Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 119
________________ 110 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? अहिंसा की दृष्टि को विकसित किए बिना इस समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। जीवन-शैली के तीन प्रकार ___ हिंसा और पदार्थ-दोनों में गहरा अनुबंध है। पदार्थ का अधिक विस्तार हिंसा के विस्तार को जन्म देता है। पदार्थवादी संस्कृति को विकसित माना जा सकता है, हिंसा के विस्तार से मुक्त नहीं कहा जा सकता। भगवान महावीर ने तीन प्रकार की जीवन-शैली का प्रतिपादन किया 1. अल्प इच्छा-अल्प हिंसा-अल्प परिग्रह 2. महाइच्छा-महाहिंसा-महापरिग्रह 3. इच्छामुक्ति-अहिंसा-अपरिग्रह जीवन की तीसरी शैली सामाजिक जीवन की नहीं है। अहिंसा और अपरिग्रह के लिए सर्वात्मना समर्पित हो जाना एक विशेष प्रयोग है। जिनकी आध्यात्मिक चेतना अधिक विकसित होती है, उन्हीं के लिए यह संभव बनता है। शेष दो प्रणालियांसामुदायिक जीवन में संभव हैं। वर्तमान की जीवन-धारा दूसरी जीवन-प्रणाली की ओर प्रवाहित है। इच्छा अधिक हो, परिग्रह या पदार्थ अधिक हो और हिंसा कम हो-यह संभव नहीं हो सकता। इच्छा, हिंसा और परिग्रह-इन तीनों की आत्यन्तिक व्याप्ति है। इनमें से किसी एक को पृथक् नहीं किया जा सकता। जीवन की पहली प्रणाली विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और विकेन्द्रित सत्ता की जीवन प्रणाली है। पहली प्रणाली मानव की मौलिक मनोवृत्तियों के निकट कम है, दूसरी मौलिक मनोवृत्तियों के निकट अधिक है इसलिए प्राथमिकता दूसरी को अधिक मिलती है, पहली को कम अथवा बिल्कुल नहीं। भगवान महावीर से आचार्य तुलसी तक, महात्मा गांधी से विनोबा तक पहली जीवन-प्रणाली का मूल्य समझाया गया है। फिर भी इन्द्रियों और सुविधाओं का आकर्षण और अहंकार तथा ममकार का दबाव इतना अधिक है कि उस सचाई को समझकर भी नहीं समझा जा रहा है। खतरे के संकेत यह आंख-मिचौनी ही है। मनुष्य जीवन की अनेक दिशाओं में आंख-मिचौनी करता रहा है और आज भी कर रहा है। उदाहरण के रूप में ओजोन की छतरी को लिया जा सकता है। वैज्ञानिक सचाई को जानने वाले सब लोग जानते हैं-ओजोन की छतरी की सुरक्षा धरती पर सांस लेने वाले जीव-जगत की सुरक्षा है। उसमें छेद होने का अर्थ है-पूरी मानव जाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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