Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 113
________________ 104 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? सत्ता-सम्राट् के लिए अहंकार से बच पाना अत्यन्त कठिन है। उस स्थिति में अपना आग्रह जितना प्रभावी रहता है, यथार्थ उतना प्रभावी नहीं रहता। अयथार्थ चिन्तन और निर्णय समस्या को और अधिक जटिल बना देते हैं। पूर्वांचल में जो हिंसा हो रही है, बिहार जिस हिंसा की आग में झुलस रहा है और कश्मीर में जो हिंसा की आग प्रज्वलित है, क्या इन सबके पीछे राजनैतिक स्वार्थ और शोषण का चक्र नहीं है? ढाई हजार वर्ष पहले भी हिंसा होती थी। छोटे-छोटे राजा आपस में लड़ते रहते थे। अपने-अपने राज्य की सीमा को बढ़ाने में लगे हुए थे पर महाभारत की ध्वंसलीला के बाद युद्ध और शस्त्र विषयक ज्ञान-विज्ञान काफी लुप्त हो चुका था। इसलिए मध्यकालीन युद्ध खतरनाक नहीं थे। उनका व्यापक प्रभाव नहीं होता था। आज की हिंसा बहुत व्यापक और बहुत सशक्त है। उसके पास साधन-सामग्री की प्रचुरता है। तलवार और भाले में वह मारक शक्ति नहीं थी, जो आज रायफल, रिवाल्वर, मशीनगन और प्रक्षेपास्त्रों में है। बुझती नहीं है आग । चुनाव का उद्देश्य है-जनता की स्वतंत्र आकांक्षा का सम्मान । चुनाव में भी बलप्रयोग और प्रलोभन दोनों का खुलकर प्रयोग होता है। अनेक बार हिंसा भी भड़क उठती है। फिर स्वतंत्रता का सिद्धान्त कैसे सुरक्षित रह सकता है? बड़े युद्ध सदा नहीं लड़े जाते। बड़ी हिंसा भी सदा नहीं होती। छोटी-छोटी हिंसा सदा से चल रही है। इसका अर्थ है-आग बुझती नहीं, उसकी चिंगारियां उछलती रहती हैं। वही आग कभी-कभी महाज्वाला बन महायुद्ध का रूप ले लेती है। सत्ता से जुड़े लोग भी इस वास्तविकता का अनुभव करने लगे हैं। यह एक सुखद घटना है। रूसी नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने अमेरिका में एक बार जो वक्तव्य दिया, वइ इसी से आन्दोलित स्वर है। उन्होंने कहा- 'मानव जाति यह अनुभव करने लगी है कि लड़ाइयां बहुत हो चुकीं। अब इन्हें सदा के लिए बन्द कर देना चाहिए। दो विश्वयुद्धों तथा उसके पश्चात् चल रहे शीतयुद्ध और छोटी-मोटी लड़ाइयों के कारण करोड़ों व्यक्तियों ने अपने प्राण गंवाए हैं और गंवा रहे विश्वशान्ति के उद्देश्य की ओर बढ़ाने का मार्ग सरल नहीं है। किन्तु हमें उन करोड़ों लोगों की आकांक्षाएं आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं, जो यह समझने लगे हैं कि बीसवीं शताब्दी की समाप्ति के इस चरण में अब मानव जाति और मानव सभ्यता के सामने विभिन्न व्यवस्थाओं या वादों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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