Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 82
________________ स्वस्थ समाज रचना 73 जाने का दुःख नहीं है किन्तु जो ममत्व और मेरापन पाल रखा था, उसका दुःख है। यह 'मेरा' था इसका दुःख है। जहां असत्य के आधार पर जीवन चलता है, वहां समस्याएं उभरती रहती हैं। एक लड़के ने मां के लिए सुन्दर साड़ी भेजी। उसने पत्र में लिखा था-इस साड़ी के सौ रुपये लगे हैं। साड़ी मनपसन्द थी। उसे लगा, ऐसी साड़ी के सौ रुपये अवश्य लगे होंगे। पास-पड़ोस की औरतें आईं। बातचीत में उसने अपने लड़के द्वारा भेजी साड़ी का जिक्र कर दिया। दिखाई। दूसरी औरतों ने मूल्य पूछा। उन्हें जानकर यह आश्चर्य हुआ कि इतनी बढ़िया और सुन्दर साड़ी सौ रुपये में कैसे आ आई? एक बहिन बोली-मैं इसके ढाई सौ रुपये देती हूं, यह साड़ी मुझे दे दो। उसने दे दी। डेढ़ सौ रुपये की कमाई हुई है, यह सोचकर वह प्रसन्न हो गई। कुछ दिनों के बाद लड़का घर आया। उसने पूछा-माँ! साड़ी पसन्द तो आई होगी? तूने उसका उपभोग किया नहीं? माँ बोली-मैंने तो ढाई सौ रुपयों में बेच दी। लड़का बोला-माँ! तूने अनर्थ कर डाला। वह एक हजार रुपयों की साड़ी थी। माँ ने कहा-अरे, तूने तो लिखा था कि वह सौ रुपयों की साड़ी है। बेटा बोला-मैंने डर के मारे लिखा था। मुझे भय था कि माँ कहेगी-इतना खर्च क्यों किया? असत्य के आधार पर चलने वाला जीवन किस प्रकार धोखा खाता है। इसका यह एक मार्मिक उदाहरण है। न जाने ऐसा धोखा कौन नहीं खाता। बहुत लोग ठगे जाते हैं। झूठ पर हमारा विश्वास जम गया, पर क्यों जमा? कहा तो यह जाता है कि झूठ बोलने वाले का विश्वास नहीं होता। यह कहते भी जाते हैं, इसकी दुहाई भी देते हैं और झूठ पर विश्वास भी जमाए रखते हैं। बड़ी विचित्र स्थिति है। यह दोहरे व्यक्तित्व की प्राप्ति ही तो भौतिक व्यक्तित्व का परिणाम है। हमें दुहाई कुछ दी जाती है और आचरण कुछ और ही होता है। ये सारी समस्याएं भौतिक व्यक्तित्व की समस्याएं हैं। आज यह आस्था बन गई है कि सचाई से काम नहीं चल सकता। झूठ से काम चलता है। इसी आधार पर जीवन की सारी प्रक्रिया चलती है। आज का व्यक्ति माता-पिता से झूठ बोल सकता है, भाई और मित्र से झूठ बोल सकता है, पत्नी से झूठ बोल सकता है, धर्म-गुरुओं को भी वह नहीं छोड़ता। वहां भी झूठ का व्यवहार कर लेता है क्योंकि उसकी आस्था है-झूठ के सहारे दो मिनट में काम बन जाता है और सत्य से काम नहीं बनता। ऐसे तर्क देने वालों ने कभी नहीं सोचा कि झूठ से काम बनता है या झूठ पाल रहे हो, इससे काम बनता है? तुम भी झूठ पाल रहे हो और काम बनाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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