Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 25
________________ 16 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? सत्यांश को पूर्ण सत्य मानने पर साम्प्रदायिक विद्वेष पनपा है। जो स्वीकारा गया है, वह सत्यांश है, पूर्ण सत्य नहीं है। अपने स्वीकृत सत्यांश को पूर्ण सत्य मानना और दूसरे के स्वीकृत सत्यांश को मिय्या मानना साम्प्रदायिक विद्वेष का मूल कारण है। प्रत्येक सत्यांश पर सापेक्षदृष्टि से विचार करो और उसमें समन्वय के सूत्र की खोज करो, साम्प्रदायिक विद्वोष सत्य की खोज में बदल जाएगा। मार्क्सवाद को गांधीवाद की चुनौती दी जा सकती है और गांधीवाद को मार्क्सवाद की चुनौती दी जा सकती है किन्तु गांधीवाद और मार्क्सवाद के सत्यांशों को समन्वय की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता, इसीलिए दोनों अच्छाइयां एक दूसरे के प्रतिपक्ष में खड़ी हैं। उनका किसी तीसरी प्रजाति को उत्पन्न करने में उपयोग नहीं हो रहा है। अनेकान्त के अनुसार तीसरी प्रजाति का उद्भव ही समस्या का समाधान है। केवल समानता समस्या का समाधान नहीं है और केवल विषमता भी समस्या का समाधान नहीं है। सामाजिक समस्या का समाधान है-समानता-विषमता नामक तीसरी प्रजाति का उद्भव। एकान्तदृष्टि से स्वीकृत राजनीति और अर्थ-व्यवस्था भी एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही है, एक दूसरे की सच्चाई को स्वीकार कर सामंजस्य स्थापित नहीं कर रही है। पूंजीवाद अपनी कल्पना के प्रासाद पर खड़ा है और समाजवाद अपनी झोंपड़ी में शरण तलाश रहा है। केनिज, मार्शल आदि के अर्थशास्त्र के अपने कुटीर हैं तो गांधी, शूमेकर आदि के अर्थशास्त्र अपनी जगह खड़े हैं। एक दूसरे पर कटाक्ष किया जा रहा है, किन्तु दोनों को मिलाकर नए अर्थशास्त्र का निर्माण नहीं किया जा रहा है। अहिंसा की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है ऐकान्तिक आग्रह का परित्याग और आवश्यक है सत्यग्राही दृष्टिकोण का विकास और फिर आवश्यक है सत्याग्रह का प्रयोग। जरूरी है प्रशिक्षण का व्यापक कार्यक्रम बीसवीं शताब्दी ने हिंसा के बहुत प्रयोग किए हैं-अणुअस्त्रों का निर्माण, शस्त्रीकरण का विकास, शस्त्रों का मुक्त बाजार, उग्रवाद अथवा आतंकवाद का प्रशिक्षण, आर्थिक साम्राज्य का विस्तार, असमर्थ जनता का शोषण और उत्पीड़न । अहिंसा का प्रयोग बहुत कम हुआ है। महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला आदि कुछ व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने अहिंसा की धरती पर खड़े रहकर हिंसा को अहिंसा में बदलने के लिए चरण आगे बढ़ाए हैं। किन्तु यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं है कि उन्होंने अहिंसात्मक प्रशिक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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