Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ प्रश्न है परिष्कार का 31 पर भरोसा ही नहीं है। जैसे तुमको भगवान कह गए हैं, वैसे ही मुझे भी कह गए हैं। जैसे तुम्हें अपने भगवान पर भरोसा है, वैसे ही मेरे भगवान पर क्यों नहीं है? झूठे हो तुम, चले जाओ यहां से।' पुजारी अपना-सा मुंह लेकर चलता बना। यह अपरिष्कृत कामना का परिणाम है। सारी प्रवंचनाएं, छलनाएं और ठगाइयां अपरिष्कृत काम या इच्छा से पैदा होती हैं। जब कामना का परिष्कार होता है तब आदमी में ठगने की भावना नहीं होती, विसर्जन की भावना, देने की भावना जाग जाती है। वह अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु का भी विसर्जन कर देता है। एस्किमो जाति, जो ध्रुव प्रदेश में रहती है, को काम परिष्कार के निदर्शन के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। उनकी कामना इतनी परिष्कृत है कि पदार्थ के प्रति उनकी मूर्छा नहीं के समान है। दूसरों को प्रिय लगने वाली वस्तु का विसर्जन करने में वे कभी पीछे नहीं रहते। उनका पहला तर्क है-हम वस्तु को भोग चुके हैं। अब इसके प्रति मन में कोई आकर्षण नहीं बचा है। जिनके मन में आकर्षण है, वे इसे भोगें। दूसरा तर्क है-संपत्ति पर व्यक्ति का अधिकार नहीं होता, समाज का अधिकार होता है, पूरी मनुष्य जाति का अधिकार होता है। जैसे यह वस्तु हमारी है, वैसे ही तुम्हारी है। तुम इसका उपयोग करो। ___यह है परिष्कृत कामना का विचार । कामना के परिष्कृत होने पर ठगने, लूटने या हड़पने की भावना समाप्त हो जाती है। महाकवि माघ की यह सर्वविदित प्रकृति थी कि जब कोई व्यक्ति याचना कर लेता तो वे बिना दिए नहीं रहते। जो वस्तु उनके पास होती, मांग करने वाले को वह निश्चित ही मिल जाती। पंडित थे। सरस्वती के प्रिय पुत्र । लक्ष्मी का वरदान प्राप्त नहीं था। काव्य-रचना से कुछ मिल जाता पर दान की इस प्रवृत्ति ने उन्हें भयंकर गरीबी में ला पटका। __एक बार एक व्यक्ति आकर बोला- पंडित प्रवर! लड़की का विवाह करना है।पैसा नहीं है पास में। आप ही लज्जा रख सकते हैं।' कवि माघ ने सोचा-अब क्या दूं? पास में फूटी कौड़ी भी नहीं है। इसकी मांग कैसे पूरी करूं? इधर-उधर देखा । देने योग्य कोई भी वस्तु नहीं मिली। अचानक उनकी दृष्टि अपनी पत्नी पर जा टिकी। वह सो रही थी। उसके हाथ में स्वर्ण-कंगन थे। माघ कवि चुपके से वहां गए। धीरे से एक हाथ का कंगन निकाला। पत्नी जाग गई। उसने जान लिया कि कोई न कोई याचक आया है। वह तत्काल बोली- 'यह दूसरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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