Book Title: Kaid me fasi hai Atma Author(s): Suvidhimati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 4
________________ कैद में फंसी है आत्मा उस ने सोचा कि निर्बल चूहा भगवान नहीं हो सकता। भगवान तो बिल्ली है। उस ने बिल्ली का पालन-पोषण शुरू किया। कहा भी है :- "स्वभावो महिपाते" स्वभाव म परिधान नहीं जा सकता है। चाहे आप सर्प को कितना भी अमृततुल्य दूध पिलाते रहो, वह जहर ही छोड़ेगा। तादृश बिल्ली का स्वभाव है चोरी करना। एक दिन बिल्ली चोरी-चोरी दूध पी रही थी, भक्त की पत्नी ने देखा। उसे बहुत गुस्सा आया। उसो आदेश में उस ने बेलन फेंक कर मारा। भक्त ने यह दृश्य देख कर सोचा कि मैं कितना मूर्ख हूँ? भगवान मेरे घर में बैठा है, और मैं समूचे विश्व में उस की खोज करता फिर रहा हूँ। उसी दिन से बह पत्नी की पूजा करने लगा। वैसे कोई गृहस्थ इस पूजा से वंचित नहीं रह पाता है (हँसी), इसलिए लिखा है : नहीं वह कौशल्या का राम, नहीं वह देवकी का श्याम। आज का जो भी है मानव, वह है बीबी का गुलाम॥ कुछ दिन और गुजर गये। एक दिन किसी बात से दोनों में भारी विवाद हुआ। पत्नी के अपशब्द के प्रयोग से क्रोधित हुए उस भक्त ने पत्नी को जोर से एक चाँटा मार दिया और ...........। एकाएक होश में आ गया। वह चिन्तन करने लगा कि मेरी बुद्धि कितनी विभ्रमित थी, जो मैं, पर की ही पूजा करता रहा, निज की शक्ति को आज तक मैंने नहीं जाना। न जाने कितने साल मैं दूसरों की पूजा करता रहा? कभी गणपति की, तो कभी चूहे की, कभी बिल्ली की, तो कभी पत्नी की, परन्तु आज तक एक बार भी मैंने अपनी पूजा, आराधना या उपासना नहीं की। भव्यो! निजात्मा की दशा भी तो ऐसी ही है। सारे संसार को एक नहीं अनेकों बार देखा, सुना, अनुभव किया, किन्तु निज चैतन्य आत्मद्रव्य का हमें भान ही नहीं हुआ। स्व की क्या दशा हो रही है? पता ही नहीं है। परद्रव्य के भोगोपभोग में ही व्यस्त है, मस्त है। सदा ही उस की दौड़ भोगपथ पर हो रही है। योगों से दूर-सुदूर प्रदेशों की आँधी यात्राएँ जारी हैं। कभी इस जीव ने अंतर्मुख हो कर चिंतन किया ही नहीं ना! सारे संसार पर अनुशासन करने की आकांक्षा संजोये रखी इसी मर्कट मन ने, किन्तु क्या आज तक कभी निज पर अनुशासन कर पाया है? इष्टानिष्ट पदार्थों में रागदेष कर के कर्मसंचय करता रहा और दुःख पाता रहा। यही एक कारण है कि यहPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32