Book Title: Kaid me fasi hai Atma Author(s): Suvidhimati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ कैद में फंसी है आत्मा जीव अनादिकाल से कर्म मल द्वारा मलिन हो कर संसार परिभ्रमण कर रहा है। संसार का अर्थ है - संसरजमिति संसार: - संसरण करना, परिभ्रमण करना या घूमना। दिगम्बर जैनाचार्यों ने जीव के दो भेद किए हैं, पहला संसारी व दूसरा मुक्त। जिसने पंचपरिवर्तन की श्रृंखला को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है, जो भवोदघि से पार हो चुका है, दुःख से छूट चुका है, जो कर्मबंधन से उन्मुक्त हो चुका है, जिसे न जन्म है, न मरण है, न इंद्रियसुख है, न दुःख, जो लोकाग्र शिखर पर विराजित है, अपनी आत्मा के आस्वादन में रममाण है, वह है मुक्त जीव। यह आत्मा की शुद्ध अवस्था का नाम है। संसारी जीव वह है, जो सदैव संसार में रहता है। अष्टकर्मों का जाल जिस को पकड़ चुका है, आहार, भय, मैथुन व परिग्रह इन चारों संज्ञाओं से जो विभूषित है, कर्म-कालिमा से जो कलुषित है और जो अनादिकाल से 84 लाख योनियों की प्रदक्षिणा दे रहा है, संसारी जीव है वह। आज मैं आप को आपको दुःख-गाथा सुना रहा हूँ। हो सकता है कि आप को विश्वास न हो पाए कि ऐसी भयानकता हमारे साथ हुई है, किन्तु मैं काल्पनिकता का प्रदर्शन नहीं कर रहा हूँ। आप का मन नहीं मानेगा कि आप ने इस भव से पूर्व निकृष्टातिनिकृष्ट पर्यायों में अनन्त दुःखों का अनुभव किया है, आप इन बातों पर जरूर तर्क उठाओगे। स्मरण रहे "नान्यथावदिनो जिनाः" भगवान जिनेन्द्र देव अन्यथावादी यानि असत्यभाषी नहीं होते। आप के तर्क आप को सांत्वना देंगे इस परिस्थिति को झुठलाकर, किन्तु लाभ कुछ भी नहीं होगा। सत्य सत्य ही रहेगा। असत्य की आँधियाँ सत्य के दीपक को बुझा नहीं पायेंगी। असत्य की राख सत्य के ज्वलित अंगारों को दबा नहीं सकतीं। इस जिनवाणी के द्वारा कथित चतुर्गति के दुःखों में कण मात्र भी असत्यता नहीं है। यह प्रश्न उठ सकता है अन्तर्मन में, कि क्या आवश्यकता है जो भूतकाल के दुःखों को प्रकट किया जा रहा है? भगवान महावीर ने कहा, पहले भूतकाल कोPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32