Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 24
________________ कैद में फंसी है आत्मा . मानवीय शरीर की आकृति तो बहुत उपलब्ध होगी, परन्तु मानवता किंचित् कदाचित विरले ही प्राप्त होगी। रामायण के महा अध्यायों में राम व रावण दोनों का उल्लेख है। दोनों का तन मानवीय था, रावण राक्षसी संज्ञा से अभिसंज्ञित हुआ तो राम दैवी संज्ञा से अलंकृत हुए। तन वही-आकृति वैसी ही अर्थात् यह सुस्पष्ट है कि एक समान आकृति में राम-रावण (मानव व दानव) दोनों ही निवास करते हैं। सभी पर्यायों में मानव पर्याय श्रेष्ठ है। आत्मिक शक्ति ही नहीं अपितु भौतिक संसार में विज्ञान द्वारा अवतरित की गई समस्त दृश्यमान शक्तियाँ मानव-जीवन का ही परिणाम हैं। मानध सर्वगुणसम्पन्न विकासोन्मुख प्राणी है तथापि आज चलने को गाड़ी, बैठने की गद्दी, गणित के लिए कैलकुलेटर, श्रवण करने के लिए टेपरिकार्डर, देखने के लिए टी.वी. (टेलीविजन), इतना ही नहीं सर्वगुण सम्पन्न रोबोट की उत्पत्ति मानव के ज्ञान की गरिमा है परन्तु आविष्कार की होड़ में मानव की स्वतंत्रता नौ दो ग्यारह होती जा रही है। फिर बताओ यह आविष्कार रत चैतन्य मानव विकास सम्पन्न है कि पंगु? कुछ ही व्यक्ति मानवता की भूमिका पर आरूढ़ होने वाले मिलेंगे। अधिकांश मानव तनधारी व्यक्ति दानवीय प्रतिकृति लेकर चलते रहते हैं। स्कूल, कॉलेजों में सब तरह की डिग्रियाँ प्राप्त करने पर भी जब तक मानवता की डिग्री प्रास नहीं होगी, मानवीय भूमिका पर आस्था नहीं होगी, तब तक क्या उस जीवन को मानव का जीवन कहेंगे? चन्द्रकान्तमणि, सूर्यकान्तमणि आदि मणि तो सीमित प्रकाश करते हैं किन्तु मानव तन रूपी मणि समस्त विश्व को आलोकित कर सकती है, यदि मानव उस का सदुपयोग करना सीख ले। आज का मानव श्रेष्ठ मस्तिष्क की गरीमामयी महान् उपलब्धि का कितने अंश में सदुपयोग कर रहा है, यह अत्यन्त विचारणीय है। आज मानव ने मानवता को तिलांजलि दी है। मानवता मरी नहीं है, केवल वह दब गई है। उसे अनावृत करने का कार्य करना है। मानव तो वही है, जिस में मानवता का वास हो। मानवता की प्राण-शक्ति का मूल स्रोत है - अनुकम्पा। मानव सामाजिक प्राणी है। समाज का अस्तित्व है; परस्पर के सहयोग का आधार - मानव हृदय की 22

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