Book Title: Kaid me fasi hai Atma Author(s): Suvidhimati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 1
________________ तु कैद में फँसी है आत्मा सम्पादकीय ..... सिसकती सुबकती यह भव्यात्मा चतुर्गति के कारागृह में संप्राप्त दुःखों से जर्जरित हुई शान्ति की खोज में निमग्न है । "कोटि जीभतै जात न भनै" एक साथ करोड़ों जिलायें दु:ख वेदना की कथा का उत्कलन करने लग जाएँ, तो भी उस अपार दुःख का एक अंश भी वर्णन नहीं कर पाएँगी। तब जब उन दुःखों का स्मरण मात्र ही हमारे रोएँ - रोएँ को कंपित कर देता है, उन दुःखों के वेदन ने हमारी क्या गत बनाई होगी? इस का हम अनुमान ही नहीं लगा सकते। विना कारण के कोई कार्य हो ही नहीं सकता। क्या कारण है कि हम सम्राटों 'को, त्रैलोक्याधिपतियों को दर-दर का भिखारी बन कर जीना पड़ रहा है? क्यों हम दुःखों की ज्वालाओं से दग्धायमान हो रहे हैं? क्यों हम पंच परावर्तन के भटकाव सेक्लान्त हो रहे हैं? जब हमारा स्वरूप भी सिद्धों के समान है, तो क्यों हमें अनन्त सुख का आस्वादन करने का मौका नहीं मिल रहा है? "मोह महामद पियो अनादि, भूल आप को भरमत वादि"। अनादिकाल से मोह रूपी महामद को पी कर यह जीव स्व-स्वरूप से विभ्रमित हुआ, परभावों की श्रृंखला में ऐसा फँस गया कि भटक गया निजानुभूति से ! अपने घर को छोड़ कर परभावों की गलियों में घूमना, यही कारण है संसार का ! कई बार हमने मनुष्य पर्याय को पाया था, किन्तु इस पर्याय का उपयोग हम अपनी सुप्तशक्ति को पुनः उद्घाटित करने में नहीं कर सके थे। यह मूढात्मा अध्यवसायों के कारण संसार में सदा विषयासक्त रही। भौतिकता की चकाचौंध में मस्त रही, व्यस्त रही और यही कारण है कि वह दुःखों से सत्रस्त रही । आज हमें पुन: यह अनमोल रत्न उपलब्ध हुआ है, क्यों न हम आत्मिक गुणों का विकास करें? ज्ञान-आराधना, वैराग्य-साधना व चरित्र-उपासना हेतु क्यों न हम अपनी मानसिकता बनायें? क्यों न हम स्व-स्वरूप को ध्याएँ? आत्मोपासना का लक्ष्य दृढ़ बनाने के लिए साधन बन कर प्रस्तुत है यह कृति ।Page Navigation
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