Book Title: Kaid me fasi hai Atma Author(s): Suvidhimati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ कैद में फंसी है आत्मा कभी असंज्ञी पंचेन्द्रिय बना। परन्तु वहाँ क्या किया? मन नहीं था, हिताहित को समझने की शक्ति नहीं थी। क्या करे? बेचारा मौत की ओर प्रयाण करते-करते ही अपनी जीवनलीला पूर्ण कर गया। देववशात् इसे संज्ञी पंचेन्द्रिय अवस्था प्राप्त हुई। यहाँ जीव विवेकहीन बना रहा। जिस माता के उदर से उस ने जन्म लिया, उसी माता के शरीर से वह अपनी वासनापूर्ति करने लगा। बलवान बना तो निर्बलों को खाता रहा और निर्बल बना तो बलवानों का भक्ष्य बनता रहा। पंचेन्द्रिय तिर्यंच के दुःख हम प्रत्यक्ष ही देखते हैं। आज कितने वन्य प्राणी मारे जाते हैं, साल भर में? उन प्राणियों की हड्डी द्वारा, मांस द्वारा, चर्बी द्वारा, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिवर्ष 250 करोड़ रुपयों का धंधा हो रहा है। आज निरीह पशुओं का भक्षण हो रहा है, प्रतिदिन लाखों प्राणियों को मानव के प्रसाधन के हेतु मौत के घाट उतार दिया जा रहा है। धिक्कार हो इस दुष्ट पर्याय को! एक माँ अपने पुत्र के प्राणों को शत्रु बन जाती है। यदि तीव्र भूख लगे तो सांप, कुतिया या बिल्ली अपने ही बालक को खा कर क्षुधाशमन करती है। छेदा जाना, भेदा जाना, भूख-प्यास सहन करना, प्रमाणातीत भार वहन करना, कृण्डी-गर्मी के आवेश को सहना, बन्धन को प्रास होना, एक न दो, अनेकविध दुःखों को वह मूक पशु सहता है, जिस का वर्णन करना असम्भव है। नरक गति के दुःख ण रमंति जदो णिचं, दव्वे खेत्ते य काले भावे य। अण्णोण्णेहि य जम्हा तम्हा ते णारया भणिया।। (धवला पुस्तक 1-पृ. 203) जिस किसी भी कारण से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से जो स्वयं में व परस्पर में कभी रमते नहीं हैं, वे तारत कहलाते हैं। अन्य ऋषि-महर्षि भी लिखते हैं कि "हिंसादिष्वदनुष्ठानेषु व्यापता: निरतास्तेषां गति निरतगतिः अथवा नरान् प्राणिनः कायति खलीकरोति इति नरकः अथवाPage Navigation
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