________________
;
कैद में फँसी है आत्मा
कोमलता अर्थात् परस्पर के सुख-दुःख में सहज संवेदना । उसी अनुभूति का अपर नाम है करुणा । जिस के अन्तर्मन में करुणा की धारा प्रवाहित नहीं हुई, वह मानव 'नहीं, पशु है।
-
Z
आज के मानव का तन-धन तथा बौद्धिक शक्तियों ने काफी विकास पाया है, किन्तु दुर्भाग्यवश हृदय में करुणा का शीतल निर्झर सूख गया है। परिणामस्वरूप वहाँ एक भयंकर तस मरुस्थल का निर्माण हो गया है। पारस्परिक वैर विरोध, घृणा, विद्वेष की धूल भरी जलती हुई तूफानी आँधियाँ चल रही हैं। इतस्ततः हत्या, लूटमार, बलात्कार, भ्रष्टाचार का रावण राज्य उपस्थित हो गया है, जिस में मानव जाति के सर्व विनाश का खतरा उपस्थित हो रहा है। अब धरती पर सुख-शान्ति का जीवित स्वर्ग करुणा ही उतार सकती है। करुणा नहीं तो, धरती नर्क है। मानव को मानव बने रहना है, तन से नहीं, मन से भी मानवता को द्योतित करना है, तो भगवती करुणा का प्रश्रय लेना होगा । दुःखी हृदय के धूल उड़ते मरुस्थल में पुनः दया का परम अमृत निर्झर बहाना होगा। " आत्मवत् सर्वभूतेषु" का नारा हमें कथनी के द्वारा नहीं करनी के द्वारा गुंजाना होगा। तभी हम छाती ठोक कर कह सकते हैं :
,
" न हि मनुष्यात् श्रेष्ठतरं किंचित् । "
हमारे भीतर मानवीय वृत्तियों का प्रादुर्भाव हो, हम सही अर्थों में मानव बनें, अपनी ऊर्जा का ( शक्ति का ) उपयोग समाज कल्याण एवं आत्मोत्थान की दिशा में
करें।
इसी परम भावना के साथ में विराम लेता हूँ।
23