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कैद में फैंसी है आत्मा
इन भौतिक विनाशकारी विचारों में, हिंसक प्रसाधनों में शान्ति का मिलना कठिन ही नहीं अति दुर्लभ है। इन साधनों में नम्बर दो का पैसा मिल सकता है, झूठी शान मिल सकती है, किन्तु सुख नहीं मिल सकता। सुख का एकमेव स्थान है मोक्ष ।
रात गमाई सोय करी, दिवस गमायो खाया हीरा जन्म अमोल है, कौड़ी बदले जाय॥
हमने आज तक Eat, drink and be merry का सिद्धान्त अपना कर जीवन के क्षण व्यर्थ में ही गंवा दिए। अब हमें आत्मसाधना करनी है। आज और अभी, क्योंकि कल का क्या भरोसा? वर्तमान समय है रेत का एक कण, भविष्य है सागर के किनारे की रेत। वर्तमान का क्षण कब खो दिया पता ही नहीं चल पाएगा। भविष्य कल्पना है, सत्य नहीं। अस्तित्व तो वर्तमान का है।
अन्त में, मैं आप को इतना ही कहना चाहूँगा कि अपनी महत्ता व समय की मूल्यता पर ध्यान दीजिए। अपना स्मरण ही धर्म की ओर कदम बढ़ाना है या मोक्ष की ओर कदम बढ़ाना है। अतएव आप अपना ही स्मरण करें।
आप अपने जीवन के सम्प्राप्त क्षणों का सदुपयोग करना सीखें, आत्मसाधना के द्वारा आप संसार का ध्वंस करें, यही मंगलकामना कर के मैं विराम लेता हूँ।
| क्या हम मानव हैं?
प्रवचनकार : परम पूज्य आचार्यरत्न 108 श्री सन्मतिसागर जी महाराज। संकलन : परम पूज्य श्रमण मुनि पुंगव 108 श्री सुविधिसागर जी महाराज।
__ मुमुक्षु भख्यात्माओं! मानव-जीवन एक बहुमूल्य ऊर्जा है। अनन्तानन्त शक्ति स्रोत इस में भरे पड़े हैं, इसलिए तो संसार के अधिकांश तत्त्ववेत्ताओं ने, तत्त्वदर्शियों ने इसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्घोषित किया है। भगवान को अति प्रिय छवि को स्मृति पटल पर लाते हुए हमें वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मानवीय जीवन-मूल्यों का चिन्तन करना है, अध्ययन करना है।
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