Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 21
________________ कैद में फंसी है आत्मा इन से खो गया धरम इन की मारी गई शरम। लिपिस्टक की हिफाजत के लिए पिता को डैड कहते हैं। डिस्को-डान्स करते हैं आधे तो मैड रहते हैं। सूट-पैन्ट पहन कर बन गए हीरो। अकल में रह गए बेचारे जीरो ॥ खाना भी खड़े-खड़े खाते हैं और गर्दभ स्वर में तो गाते हैं। कैसे होगा युवकों का कल्याण! आकर बताओ, महावीर भगवान॥ जीवन के अन्तिम पड़ाव का नाम है बुढ़ापा। जीवन व मृत्यु के बीच का सेतु है यह। बुढ़ापा यानि जीवन का आखिरी छोर। बचपन की बेहोशी, जवानी की मदहोशी, बुढ़ापे की खामोशी इन तीनों का सम्मिश्रण है जीवन। जब जवानी आयी थी, तब वासना की हरियाली छायी थी, नित्य नये फैशन में डूब गए थे, धन कमाना व भोग करना ये दो ही कार्य उसे याद थे। जवानी का सूर्य ज्यों ही डूब गया, बुढ़ापे की संध्या ने जीवन-सृष्टि पर अपना आधिपत्य कायम किया। अंग में उमंग नहीं बची। अब यह जीवन पराधीन हो गया। कमर ऐसी झुक गयो मानो विगत में खोई जवानी को पुनः ढूँढने हेतु वह जीव आतुर हो। जिन्दगी में कभी कोई यात्रा नहीं की थी तो पैरों ने नाराज हो कर चलने-फिरने का कार्य बन्द कर दिया। कभी किसी की अच्छाई नहीं देखी गई होगी शायद, कभी किसी के दुःख देख कर आँखों से कभी दो बूँद आँसू बहाने की फुर्सत नहीं थी, इसलिए आँखों ने विदाई मांग ली। कभी हाथों से दानादि शुभ कार्य नहीं करवाये थे, बुरे कार्य करते-करते हाथ थक गए। मुंह में नमूने के लिए भी दौंत नहीं बचा। बाल भी जर्जरता के कारण सफेद हो गये। कान बुराई सुनते-सुनते इतने ऊब गये कि उन्होंने अपना कार्य समेट लिया। जीवन का पाप आँखों के सामने नाचने लगा, हाय! न जाने इस करनी के कारण मुझे कौन-सी गति में जाना पड़ेगा? यह सोच कर शरीर 19

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