Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 19
________________ ! V जो मन से युक्त हैं, सूक्ष्मविचार, दूरदर्शनादि क्रियाओं से अथवा चिरकाल धारणादि के उपयोग से युक्त हैं अथवा जो मनु की संतान हैं, वे मनुष्य हैं। एक सुभाषितकार ने लिखा है : गृहेषु चन्द्रो मृगराज मृगेषु, राजा खगेन्द्रो गरुडोऽण्डजेषुः ! रत्नेषु वज्रं जलजेषु पद्मं यथा तथा सर्व भूतेषु नृत्त्वम् !! + कैद में फँसी है आत्मा जिस प्रकार ग्रहों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, पशुओं में सिंह अतुल पराक्रमी है, मानवों में राजा उत्तम है, पक्षियों में गरुड़ का अस्तित्व शीर्ष पर है, रत्नों में हीरा मूल्यवान है, जल में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं में कमल श्रेष्ठ है, वैसे समस्त पर्यायों में मानव पर्याय श्रेष्ठ है। विज्ञान की दिन प्रतिदिन उभरती शक्तियों को देख कर मानव मन के असाधारणत्व का बोध हो जाता है। मानव अपने असाधारण गरिमामय मस्तिष्क के द्वारा समूची सृष्टि पर राज्य कर रहा है । आज तक जितने भौतिक आविष्कार हुए या आज जो हो रहे हैं सब मानव की देन हैं। अपने पर अनुशासन कर यह जीव इच्छित सुख को प्राप्त कर सकता है। मानव तन रूपी पुतला परमात्मा का प्रतिनिधित्व ले कर चलता है। आध्यात्मिक जीवन की समग्र शक्तियाँ मानवीय भूमि पर ही पल्लवित होती हैं, पुष्पित होती हैं, मानव का महिमागान करते हुए तुलसीदास ने लिखा है : बड़े भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सब ग्रन्थन गावा ॥ इतना अमूल्य अवसर पा कर हमने क्या किया? क्या लाभ उठा रहे हैं हम उस से? क्या उपयोग कर रहे हैं हम उस का? हम इतने महतावसर को व्यर्थ ही तो खो रहे हैं न? क्या कर रहे हैं हम ? अपने आप की कैसी दयनीय अवस्था बना ली हमने? शिशुकाल जु लडावन में, बचपन खेल गवाँय दिया। जब तरूण भये ग्रह चक्र फँसे धन संचय भोगत भोग किया ॥ वृद्धापन अंग उमंग नहीं, चिंतामणि पाय डुबोय दिया। जप तप व्रत दान न ध्यान किया, नर जन्म वृथा ही खोय दिया ॥ बालू के समुद्र में गिरे हुए हीरे को पुनः पाना जितना कठिन है, उस से भी कठिन 17

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