Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ कैद में फँसी है आत्मा इतना बड़ा लौह पिण्ड यदि उष्ण नरकों में डाला जाय तो क्षण मात्र में वह गल जाए। नरक में उष्णता की अपेक्षा शीतवेदना और भी अधिक भयंकर है। उस उष्णता के ताप से बचने के लिए वह जीव शान्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से वैतरणी नदी में कूद पड़ता है, किन्तु पापी को शान्ति कहाँ? वह नदी खून-पीव से भरी हुई व अनेकों कृमी कीटकों से युक्त होती है। उस का पानी अतिशय खारा, दुर्गन्धित है। वे कीटक उस नारकी को भयंकर वेदना देते हैं। यहाँ से निकला नारकी अपनी घबराहट के शमन करने हेतु वृक्ष के नीचे आ कर बैठता है। वहाँ सेमर नामक वृक्ष है, जिस के पत्ते तलवार की धार के समान अति तीक्ष्ण हैं। नारको जैसे ही नीचे जाता है तो वे पत्ते उस पर गिर कर उस के अंगों को छिन्न-भिन्न कर देते हैं, कहते हैं गः . 'नकटी के व्याह में सौ मिज" दान नारको शान्ति पाने के लिए जहाँ भी जाता है, वहाँ कष्ट उठाता है। पारस्परिक दुःख - उत्पन्न होने के तुरन्त बाद गेंद सदृश उछल-कूद कर अधम दशा को प्राप्त हो वह नीचे गिरता है तो नवीन नारकी को देखते ही पुराने नारकी उस पर हमला कर देते हैं। उन की परिणति ठीक वैसी ही होती है जैसे अपनी गली में अन्य कुत्ता आने पर अन्य कुत्तों की होती है या शिकार को देख कर मांसाहारी प्राणी की होती है। वे नारको मुद्गर, मूसल, भाला, तलवार, करोंत, कटारी आदि नानाविध आयुधों के द्वारा उस को मारने व काटने लगते हैं। कितने ही नारकी पूर्व भव का वैर स्मरण कर के उन्हें धधकती भट्टी में फेंकना, घानी में पेल देना, उबलते हुए तेल की कड़ाही में झोंकना आदि कार्यों के द्वारा दुःख देते हैं। ___ नारकी जीवों की अपृथग्विक्रिया होती है। वे अन्य नारकियों को दुःख देने के हेतु अपने शरीर की क्रूर विक्रिया करते हैं, कभी वैतरणी नदी में मगरमच्छ बन कर कष्ट देते हैं तो कभी वृक्ष पर तीक्ष्ण वज्रमय चोंच से गिद्ध, गरुड़, चील आदि मांसभक्षी प्राणी का रूप धारण कर मांस को नोंच-नोच कर खाते हैं तथा ऊपर से तीव्र वेदनादायक नमक मिर्च डालते हैं, जिस से वह नारकी पीड़ा से बहुत छटपटाता है व अन्त में मूर्च्छित हो जाता है। उमास्वामी महाराज ने इस दुःख का चित्रण निम्नलिखित शब्दों

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