Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ कैद में फँसी है आत्मा में किया है :- परस्परोदीरित दुःखाः (3/4) उन नरकों में परस्पर उदीरित दुःख भी आचार्य श्री अकलंक देव इस सूत्र के व्याख्यान प्रसंग में लिखते हैं कि निर्दय होने पर कुत्ते के समान एक-दूसरे को देख कर नारकियों के क्रोध की उत्पत्ति हो जाती है। जैसे कुत्ते शाश्वतिक अकारण अनादिकाल से होने वाले वैर के कारण निर्दय हो कर भौंकना, छेदना-भेदना आदि उदीरित दुःख वाले होते हैं, उसी प्रकार नारकी भी मिथ्यादर्शन के उदय से विभंग नाम को प्राप्त भवप्रत्यय अवधिज्ञान के द्वारा दूर से ही दुःख के हेतुओं को जान कर उत्पन्न दुःख की प्रत्यासत्ति से एक दूसरे को देखने से उत्पन्न हुई है क्रोध अग्नि जिन की, ऐसे वे अपने शरीर की विक्रिया से तलवार, परशु आदि शस्त्र बना कर परस्पर देहघात, छेदन-भेदन, पीड़न आदि के द्वारा उदीरित दुःख वाले होते हैं। वृक्ष, शस्त्र आदि रूप धारण कर नारको ही अन्य नारकियों को सताते हैं। यहाँ के परस्पर मित्र वहाँ शत्रु बन जाते हैं। एक दूसरों को दुःख देने में ही वहाँ आनन्द आता है। प्रथम नरक की जघन्य आयु 10,000 वर्ष की होती है। पहले नरक की उत्कृष्ट आयु एक सागर, दूसरे की तीन सागर, तीसरे की 7 सागर, चौथे की 10 सागर, पाँचवे की 17 सागर, छठे की 22 सागर, सातवें की 33 सागर की है। एक नरक की उत्कृष्ट आयु में एक समय मिलने पर आगे के नरक की जघन्य आयु जाननी चाहिए। सागर शब्द बड़ा रहस्यमय उपमामान है। दो हजार कोस लम्बा, चौड़ा गहरा गड्डा खोद कर उस में भोगभूमिज भेड़ के बाल जिस के फिर दो टुकड़े न हो सकें, उन से भर दो। 100 साल में एक बाल निकालो। इस गड्ढे को खाली करने में जितना समय लगता है, उतने समय को व्यवहार पल्य कहते हैं। असंख्यात व्यवहार पल्य - 1 उद्धार पल्य। असंख्यात उद्धार पल्य = 1 अद्धा पल्य। 10 कोड़ा-कोड़ी अद्धापल्य = 1 सागर। 1 करोड़ x 1 करोड़ = 1 कोड़ा-कोड़ी। इतने लम्बे काल तक यह जीव वहाँ दुःख को सहन करता है। इन जीवों का 12

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