Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 7
________________ कैद में फंसी है आत्मा अर्थ है "अनन्त जीवेभ्य: नियतां गां ददाति इति निगोदः" अनन्त जीवों का जहाँ एक ही आधार है, एक साथ जो जन्म-मरणादि करते हैं, वे जीव निगोदिया जीव हैं। निगोदिया 'जीव के दो भेद हैं। जिस जीव ने अनादिकाल से आज तक कभी निगोद पर्याय को छोड़ कर अन्य पर्याय नहीं पाई, वे नित्य निगोदिया कहलाते हैं तथा जिन्होंने निगोद-पर्याय त्याग कर अन्य पर्याय तो पाई थी किन्तु फिर घोर पापोदय से निगोद गए, वे इतर निगोदिया जीव हैं। इस जीव ने अपनी यात्रा का प्रारम्भ उस निगोद पर्याय से किया है। वहाँ एक श्वास में अठारह बार जन्म व अठारह बार मरण करता रहा। सोचने जैसी बात है कि 70 या 30 वर्ष के बाद मरने के सन्मुख पहुँचा मनुष्य मौत का आमन्त्रण सुन कर घबरा जाता है, उस के पंजे से बचने के लिए डॉक्टरों की शरण में व औषधियों के चरण में पहुँच जाता है। वह निगोदिया जीव कैसे सह पाता होगा, यह मरण का दुःख? मरण संसार का सब से बड़ा दुःख माना जाता है। एक ऐसा दुःख जिस का वर्णन करने के लिए यदि संसार के समस्त कागज तथा समस्त स्याही का उपयोग भी कर लिया जाय तब भी इस दुःख का वर्णन पूरा नहीं होगा। एक बार की मृत्यु भी जब अनन्त वेदना का कारण है, तो एक श्वास में अठारह बार मरण करने वाले जीवों के दुःख की कल्पना ही असंभव है। या तो भुक्तभोगी जाने या फिर सर्वज्ञा उस के दुःखों की कल्पना आप उस पुरुष से कर सकते हैं जिस के हाथ पैर रस्सी के द्वारा कस दिये गए हैं, मुँह में कपड़ा ढूंस दिया गया है, जिस से वह बोल भी नहीं सके। गले में रस्सी का फन्दा डाल कर वृक्ष पर लटका दिया गया है, ऊपर से उस की नंगी पीठ पर नमक का पानी छींट कर कोड़े लगाए जा रहे हैं। वह अपने दुःखों को व्यक्त नहीं कर पाएगा, उसी तरह निगोदिया के दुःख वह जीव व्यक्त नहीं कर सकता। निगोदिया जीव यानि साधारण वनस्पतिकायिक जीव। यह जीव पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, आहारक ऋद्धिधारी मुनि, देव, नारकी, वायुकायिक और अरिहन्त, इन के शरीरों पर नहीं पाए जाते। ये 8 शरीर छोड़े, तो संसार का एक भी स्थान ऐसा नहीं बचा है, जहाँ वे न रहते हों। लोकाकाश में वे उसाठस भरे हुए हैं। एक राई जितना सूक्ष्म स्थान भी नहीं मिलेगा, जहाँ निगोदिया न हो। अत्यन्त भाव कलंक, प्रचण्ड दुर्लेश्या रूप, संक्लेश परिणामों की प्रचुरता से कई जीव ऐसे हैं जिन्होंने आज तक एक बार भी उस पर्याय को नहीं छोड़ा है न आगे छोड़ पाएंगे।

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