Book Title: Kaid me fasi hai Atma Author(s): Suvidhimati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ कैद में फंसी है आत्मा जानो, भूतकाल की गलतियाँ आप को ज्ञात होगी तो आप उन गलतियों को दूर करने का प्रयास करोगे। चतुर्गति के परिभ्रमण में कारणभूत अज्ञानादि के दुष्फलों का कथन आप को ज्ञानमार्ग की ओर अग्रसर होने में सहयोगी बनेगा। उन दुःखों को सुनने पर आप का मन भय से आपूरित हो जायेगा। आप चाहोगे कि अब ऐसे दु:ख आप को फिर सइने न पड़ें, आप के मन में जिज्ञासा का निर्माण होगा कि ऐसा कौन-सा स्थान है, जहाँ दुःख का नाम लेश भी नहीं है? उस स्थान पर जाने का मार्ग कौन-सा है? यही जिज्ञासा आप को मोक्ष-मार्ग पर दृढ़ बनाएगी। उन दुःखों का स्मरण आप को संसार में मस्त नहीं होने देगा, संसार में रह कर भी आप सांसारिक भोगोपभोगों में मान नहीं हो पाओगे, तुम्हारा मन तुम्हें कचोटेगा, सुप्त अवस्था में तुम जी नहीं सकोगे, कषाय और प्रमाद तुम्हें लोरियौं सुना कर फिल करने के लिए नहीं आ पाएंगे। आप जागे रहोगे सदा। जागृत अवस्था का नाम ही वैराग्य है। कुन्द-कुन्द देव ने समयसार में लिखा है :-"सम्यग्दृष्टि का भोग निर्जरा का कारण है।" इस में कोई भूल नहीं है, आचार्य देव की, क्योंकि अमृतचन्द्राचार्य ने प्रमाण-पत्र दिया है सम्यग्दृष्टि को "सम्यग्दृष्टिर्भवति नियतं ज्ञान वैराग्य शक्तिः"। सम्यग्दृष्टि में ज्ञान व वैराग्य की शक्ति होती है। संवेग गुणधारी भव्यात्मा संसार में रच-पच नहीं सकेगी। वैराग्य की अभिवृद्धि के लिए आवश्यक है कि आप संसार के दुःखों को आँखों से ओझल न होने दें, जिन्हें कि आप भव भवान्तर में सहते आये हैं। तो आओ, सुनो सब अपनी आत्म कहानी॥ तिर्यच गति के दुःख तिरियंति कुडिल भावं सुवियडसण्णा णिमिट्ठमण्णाणा। अच्चंत पाव बहुला तम्हा तेरिछया णाम॥ (धवला पुस्तक 1 - पृष्ठ 203) जो कुटिलता को प्राप्त हैं, जिन की चारों संज्ञाएँ व्यक्त हैं, जो निकृष्ट अज्ञानी हैं, जिन में पाप की बहुलता है, वे तिर्यंच हैं। इस जीव की जीवन-कथा का प्रारम्भ नित्यनिगोद पर्याय से होता है। निगोद काPage Navigation
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