Book Title: Kaid me fasi hai Atma
Author(s): Suvidhimati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ कैद में फँसी है आत्मा BAALA निर्गतोऽयः पुण्यं एभ्यस्ते निरयाः तेषां गतिः निरयगतिः ।" अर्थात् हिंसादि पापानुष्ठान में जो मग्न हैं, उन की गति को निरतगति (नरकगति) कहते हैं। प्राणियों को जहाँ यातनाएँ दी जाती हैं, पीसा जाता है, वह नरक है, किंवा जिन का पुण्य निर्गत हो चुका है, समाप्त हो चुका है, वे निरय हैं, उन की गति निरय गति यानि नरक गति है। आचार्य श्री उमास्वामी जी तत्त्वार्थसून ते हैं : पै बह्वारंभ परिग्रहत्वं नारकस्यायुषः । [6/15] बहुत आरम्भ तथा बहुत परिग्रह नरक गति का कारण हैं। साथ ही अति संक्लेशभाव अर्थात् कषायों की तीव्रता, व्यसन, पापानुष्ठान में प्रवीनता, कठोर वचन बोलना, चुगली करना, धन संचय में मग्न रहना, साधु निन्दा करना, नीच बुद्धि रखना, कृतघ्नता धारण करना आदि अनेक कारण नरक गति के हैं। स्वामी कुमार (कार्तिकेय) कार्तिकेयानुप्रेक्षा में नरक गति के दुःखों को पाँच विभागों में बाँटते हैं। वे कहते हैं : असुरोदीरिय दुक्खं सारीरं माणसं तहा विविहं । खिम्भवं च तिव्वं अण्णोपण कयं च पंचविहं ॥ अर्थात् - (1) असुर कुमारों द्वारा दिया गया दुःख । ( 2 ) शारीरिक दुःख | (3) मानसिक दुःख । (4) क्षेत्रज दुःख । तथा (5) पारस्परिक दुःख | 5 प्रकार के दुःख नरक में होते हैं। असुरोदीरित दुःख - उमास्वामी महाराज लिखते हैं : संक्लिष्टाऽसुरोदीरित दुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ( 3/5 ) - संक्लिष्ट परिणाम के धारी असुरकुमार देव चतुर्थ नरक से पूर्व अर्थात् तृतीय नरक तक जा कर दुःख देते हैं। 8 बलभद्र, नारायण व प्रतिनारायणों के समय में प्रत्येक के एक-एक नारद होते हैं। वे जीव विघ्नसंतोषी होते हैं। दो जीवों में वैर बढ़ा कर आनन्द मनाते हैं। नरकों में F ม

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