Book Title: Kaid me fasi hai Atma Author(s): Suvidhimati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 2
________________ कैद में फंसी है आत्मा इस पुस्तक में गति का प्रस्तुतीकरण तिर्यंच, नरक, देव व मनुष्य इस क्रम से किया है। चारों गतियों के दु:खों का वर्णन कर उन पर्यायों को कैसे खोया - इस का विस्तृत वर्णन है। "यूँ ही खोया" में संकलित प. पू. आचार्य 108 श्री सन्मतिसागर जी महाराज का प्रवचनांश इस कृति में ज्यों का त्यों उद्धृत किया है। आगम पद्धति का पुस्तक में पूर्ण ध्यान रखा गया है। मुनिश्री ओजस्वी तथा प्रखर वक्ता हैं, धर्मसभा के मनोमन्दिर में वैराग्य व ज्ञान के बीज बोने में निष्णात हैं। उन के प्रवचन में आगम का स्रोत ही बहता है। जब भी बोलते हैं तो निडरता से निष्पक्ष हो कर बोलते हैं। प्रस्तुत कृति आप को उन के ज्ञान व निष्पक्षता का दर्शन कराएगी ही। ___वीर प्रभु से यही प्रार्थना है कि :- "हम सब के दिशादर्शक श्री गुरुदेव की साधना दिन-ब-दिन वृद्धिंगत होती रहे।" ___ मुनिश्री सदा ही सदुपदेश द्वारा हमारा मार्ग प्रशस्त करते रहें, बस हम तो यही भावना भाते हैं। अन्त में मेरी सहयोगिनी संघस्थ आर्यिकाओं की मैं सतत् ऋणी रहूँगी, क्योंकि उन्होंने इस पुस्तक से सम्बन्धित नाना प्रकार के मार्गदर्शन मुझे दिये हैं। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था का यह स्तुत्य प्रयास है कि वह मुनिश्री के वचन घर-घर पहुँचाने का पुण्यकार्य कर रही है। संस्था के सभी सदस्यों को व समस्त द्रव्यदाताओं को मेरा आशीर्वाद। आओ! अब पुस्तक पढ़ें। आर्यिका सुनिधिमतीPage Navigation
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