Book Title: Jyo tha Tyo Thaharaya Author(s): Osho Rajnish Publisher: Osho Rajnish View full book textPage 5
________________ ज्यों था त्यों ठहराया पति ने कहा, क्या कहती हो! तुम भी छाड़ चलीं! पत्नी ने कहा, अब यहां रह कर क्या? अपने जीवन को बरबाद करना है! यहां लोग सब कारणों से जुड़े हैं। अकारण तो प्रीति कहां मिलेगी? और जब तक अकारण प्रीति न मिले, तब तक प्राण भरेंगे नहीं। यहां तो सब कारण हैं। लोग शर्तबंदी किए हुए हैं! एक मित्र अपने बहुत प्रगाढ़ हितैषी से कह रहा था कि दो स्त्रियों के बीच मुझे चुनाव करना है--किससे शादी करूं? एक सुंदर है--अति सुंदर है, लेकिन दरिद्र है, दीन है। और एक अति कुरूप है, पर बहुत धनी है। और अकेली बेटी है बाप की। अगर उससे विवाह करूं, तो सारा धन मेरा है। कोई और मालिक नहीं उस धन का। बाप बूढा है। मां तो मर चुकी, बाप भी आज गया, कल गया! लेकिन स्त्री कुरूप है। बहुत कुरूप है! तो क्या करूं, क्या न करूं? उसके मित्र ने कहा कि इसमें सोचने की बात है! अरे, शर्म खाओ। प्रेम और कहीं धन की बात सोचता है। जो सुंदर है, उससे विवाह करो। प्रेम सौंदर्य की भाषा जानता है--धन की भाषा नहीं। जो सुंदर है, उससे विवाह करो।। मित्र ने कहा, तुमने ठीक सलाह दी। और जब मित्र जाने लगा, तो उसके हितैषी ने पूछा कि भई, और उस कुरूप लड़की का पता मुझे देते जाओ! इस दुनिया में सारे नाते-रिश्ते बस, ऐसे हैं! फिर ये सारी तस्वीरें इकट्ठी हो जाती हैं। फिर यह तय करना ही मुश्किल हो जाता है कि मैं कौन हूं। और अपने को तो तुमने कभी जाना नहीं; सदा दर्पण में जाना! तुमने कभी किसी म्यूजियम में अनेक तरह के दर्पण देखे! किसी में तुम लंबे दिखाई पड़ते हो। किसी में तुम ठिगने दिखाई पड़ते हो। किसी में तुम मोटे दिखाई पड़ते हो। किसी में तुम दुबले दिखाई पड़ते हो। तुम एक हो, लेकिन दर्पण किस ढंग से बना है, उस ढंग से तुम्हारी तसवीर बदल जाती है। और इतने दर्पण हैं कि अनेकता पैदा हो गई! रज्जब तो कहते, हैं--दुई! दुई पर ही कहां बात टिकी? बात बहुत हो गई। दो से चार होते हैं, चार से सोलह होते हैं। बात बढ़ती ही चली जाती है। दुई हई, कि चूके। फिर फिसलन पर हो। फिर फिसलते ही जाओगे, जब तक फिर पुनः एक न हो जाओ। एक हो जाओ--तो ज्यूं था त्यूं ठहराया। दर्पण से मुक्त होना संसार से मुक्त होना है। दर्पणों से मुक्त होना संसार से मुक्त होना है। जिस व्यक्ति को दूसरों की आंखें क्या कहती हैं, इसकी जरा भी परवाह नहीं, उसी को मैं संन्यासी कहता हूं। मुझसे लोग पूछते हैं, आपको इतनी गालियां पड़ती हैं। इतना आपके खिलाफ लिखा जाता है! करीब-करीब सारी दुनिया में। आपको कुछ परेशानी नहीं होती! मुझे परेशानी होने का कोई कारण नहीं, क्योंकि कोई दर्पण क्या कह रहा है, यह दर्पण जाने। मुझे क्या पड़ी। Page 5 of 255 http://www.oshoworld.comPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 255