Book Title: Jinsutra
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwe Nakoda Parshwanath Tirth

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Page 8
________________ भूमिका 'जिनसूत्र' भगवान् महावीर की पवित्र वाणी का सार-संकलन है । भगवान् के २६०० वें जन्म-जयंती-वर्ष पर उनके श्रीचरण में समर्पित करने के लिए इससे बेहतरीन पुष्प और कौन-सा हो सकता है ! भगवान के उपदेश और आदेश तो वर्तमान की आवश्यकता है । जिनसूत्र का पारायण और प्रसारण घर-घर में सदाचार और सद्विचार की गंगा-यमुना पहुँचाने जैसा पुण्यकारी है। ___'जिनसूत्र' जैन धर्म का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। इसकी संरचना में 'समण- सुत्तं' को आधार बनाया गया है । 'समण-सुत्तं' जिन धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ है । 'समण-सुत्तं' का स्वरूप और अधिक सरल, संक्षिप्त एवं सहज बोधगम्य हो, जिनसूत्र' की संकलना के पीछे यही भावना रही 'जिनसूत्र' में हमारे सामाजिक, नैतिक एवं साधनात्मक जीवन का पथ प्रशस्त हुआ है । इसमें हमारा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है वह स्वयं भगवानश्री की देशना है । भगवान् के सूत्रों पर भूमिका या उपसंहार देने वाला मैं कौन होता हूँ ! भगवान् की वाणी स्वयं ही अपनी भूमिका है। मेरी ओर से इतना ही अनुरोध है कि हम परमात्मा की वाणी का पुनः पुनः स्वाध्याय करें, मनन करें । मनन से मार्ग खुलते हैं । जीवन का पथ इससे स्वतः रूपान्तरित/प्रकाशित होगा। भगवान् की वाणी को जीवन में उतारना अपने-आप में उनका मंदिर निर्माण करना है । भगवान् करे ऐसे मंदिर घर-घर बनें, ऐसे दीप घट-घट जलें। -चन्द्रप्रभ

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