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मोक्षमार्ग का अनुसरण तथा इष्टफल की प्राप्ति होती रहे ।
जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं । तं सव्वजीवसरणं, णंददु जिणसासणं सुइरं ।।११।। जिसमें लीन होकर जीव अनन्त संसार-सागर को पार कर जाते हैं तथा जो समस्त जीवों के लिए शरणभूत है, वह जिनशासन चिरकाल तक समृद्ध रहे। .
२. संसारचक्रसूत्र
अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्ख-पउराए । किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाऽहं दुग्गइं न गच्छेज्जा? ॥१॥ अध्रुव, अशाश्वत और दुःख-बहुल संसार में ऐसा कौन-सा कर्म है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ।
१३. खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा।
संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥२॥ ये काम-भोग क्षणभर सुख और चिरकाल तक दुःख देने वाले हैं, बहुत दुःख और थोड़ा सुख देने वाले हैं, संसार-मुक्ति के विरोधी और अनर्थों की खान हैं।
१४. सुट्ठवि मग्गिज्जतो, कत्थ वि केलीइ नत्थि जह सारो।
इंदिअविसएसु तहा, नस्थि सुहं सुट्ठ वि गविटुं ॥३।। बहुत खोजने पर भी जैसे केले के पेड़ में कोई सार दिखाई नहीं देता, वैसे ही इन्द्रिय-विषयों में भी कोई सुख दिखाई नहीं देता।
१५. जह कच्छुल्लो कच्छं, कंडयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं ।
मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं बिंति ॥४॥ खुजली का रोगी जैसे खुलजाने पर दुःख को भी सुख मानता है, वैसे ही मोहातुर मनुष्य कामजन्य दुःख को सुख मानता है।
१६. जाणिज्जइ चिन्तिज्जइ, जम्मजरामरणसंभवं दुक्खं ।
न य विसएसु विरज्जई, अहो सुबद्धो कवडगंठी ॥५॥
संसारचक्रसूत्र/११