Book Title: Jinsutra
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwe Nakoda Parshwanath Tirth

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Page 76
________________ खम्भे जैन तीर्थों को कला की दृष्टि से और ऊपर उठाते हैं। धर्म-ग्रन्थ : ____ आगम और अनुयोग जैन परम्परा के पूज्य ग्रन्थ हैं । इनमें तीर्थंकरों की वाणी को संकलित किया गया है । आचारांग, उत्तराध्ययन, भगवती सूत्र, समयसार, अष्ट पाहुड़ आदि विशेष उल्लेखनीय शास्त्र हैं । कल्पसूत्र की महिमा तो इतनी है कि इसका जैन समाज में वाचन और श्रवण महोत्सवपूर्वक होता है । जैसलमेर, पाटन आदि नगरों में विशाल ज्ञान भण्डार हैं जहाँ जैन धर्म के हजारों ग्रन्थ ताड़पत्र इत्यादि में लिखे हुए सुरक्षित हैं। कुछ प्राचीन ग्रन्थों में तो रत्न-जड़ित स्वर्णचित्र भी उपलब्ध हैं । समणसुत्तं प्रतिनिधि ग्रन्थ है । 'जिनसूत्र' उसी का जनसुलभ संस्करण है । पर्व एवं मंत्र : ___'नवकार मंत्र' जैन धर्म का महामंत्र है और 'पर्युषण' इसका महापर्व । महामंत्र ने जैन धर्म की विभिन्न शाखाओं को एक सूत्र में जोड़ रखा है । पर्युषण महापर्व भाद्रपद माह में निरन्तर आठ दिन तक मनाया जाता है । दिगम्बर परम्परा में यह पर्व दस दिवसीय होता है। जिसके दौरान जैन लोग यथाशक्ति अधिकाधिक दान, सामायिक, प्रतिक्रमण, शास्त्र-श्रवण एवं पूजा-पाठ आदि करते हैं । वे इस महापर्व में अहिंसा का पूर्ण पालन करने के लिए रात को भोजन नहीं करते एवं फल तथा हरी सब्जियाँ भी नहीं खाते हैं। इस पर्व का अन्तिम दिन 'संवत्सरी' कहलाता है जिसे मनाकर जैन वर्षभर में जाने-अनजाने की गई गलतियाँ और मानहानि के लिए परस्पर क्षमा-प्रार्थना करते हैं। जैनत्व का वरण : जैन धर्म की यह मूलभूत सिखावन रही है कि कोई भी व्यक्ति न तो जन्म से ब्राह्मण होता है, न क्षत्रिय, न वैश्य और न शूद्र । फिर कोई मात्र जन्म से जैन कैसे हो सकता है ! हमारा देश कर्म-प्रधान है और जैन धर्म कर्म को ही मनुष्य की अवनति या उन्नति का आधार मानता है । वे सब लोग जैन हैं जो भगवान् महावीर की आस्थाओं में विश्वास रखते हैं और उनके कल्याण-मार्ग पर चलते हैं। मंगल भावनाः सर्व मंगल मांगल्यम्, सर्व कल्याण-कारणम् । प्रधानम् सर्वधर्माणाम्, जैनं जयति शासनम् ॥ जिनसूत्र/७५

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