Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 193
________________ १७६ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान गृहस्थ को साधर्मिक भक्ति के साथ-साथ साधु-साध्वी के आहार पानी की व्यवस्था का भी ध्यान रखना चाहिए। साधर्मिक भक्ति, तीर्थंकर, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा रखता है वही सच्चा श्रावक कहलाता है। आचार्य अभयदेव सरिजी ने अपने ग्रन्थ “साधर्मी वात्सल्य कुलक' में कहा है कि- नवकार मन्त्र का स्मरण करने वाले सभी जैन धर्मी हैं। उनके साथ सगे भाई से भी अधिक वात्सल्य रखते हुए धर्मपथ पर आगे बढ़ना चाहिए। सद्गृहस्थों की स्त्रियों के गृहस्थ धर्म सम्बन्धी चर्चा का वर्णन करते हुए श्री आचार्यजी कहते हैं कि-रजस्वला स्त्री को तीन चार दिन तक घर के सम्पूर्ण कार्य का त्याग कर देना चाहिए। जो इस नियम का पालन नहीं करती हैं उनका घर अपवित्र हो जाता हैं और देवता से हीन हो जाता हैं। धर्म और धन की हानि होती है। घर सुरक्षा हीन हो जाता है, उस घर में प्रेतों का निवास होने लगता है। अतः रजस्वला स्त्रियों को धार्मिक कार्य, प्रतिक्रमण, गुरुवंदन, देवदर्शन, नवकार स्मरण आदि धार्मिक क्रियाएं एवं सूत्रो का उच्चारण नहीं करना चाहिए। यदि उपरोक्त क्रियाएं रजस्वला स्त्री से सम्पन्न होती हैं तो सम्यक्त्व की हानि होती है। प्रायः यह देखा गया हैं कि आज भी जो धार्मिक लोग हैं उनके घरों में रजस्वला स्त्रियाँ पूर्णरूपेण गृहकार्यों से मुक्त होकर ३-४ दिन अलग ही रहती हैं। श्रावक के जीवन को सुखमय बनाने एवम् घर को स्वर्गमय बनाने के लिए आचार्य श्री जिनदत्तसूरि द्वारा बताए गए सद्गृहस्थ के उक्त धर्मों का पालन करना चाहिए। “मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव,अतिथिदेवो भव' के सूत्र का पालन करना चाहिए। वृद्ध एवं आदरणीय व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए। मालिक की आज्ञा में रहकर उसके वचनों को मानना चाहिए। माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि उनका हमारे जीवन पर बहुत उपकार होता है। मातापिता एवं गुरु की भक्ति करनी चाहिए। मार्गानुसारी का दूसरा गुण माता-पिता की सेवा का है । अन्य सम्बन्धों की अपेक्षा माता-पिता का सम्बन्ध निकटतम है । सन्तान पर उनके उपकार अगणित और असीम हैं । जैसे माली पौधों की देखरेख करता है, उससे भी अधिक माता-पिता अपनी सन्तान की करते हैं, उनके विकास का हर प्रयास करते हैं । एक कवि ने कहा है: पृथ्वी के समस्त रजकण एवं समुद्र के समस्त जलकणों से भी अनंतगुणा उपकार माता-पिता का होता है । आगम साहित्य में भी माता-पिता का स्थान देव-गुरु For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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