Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 241
________________ २२४ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान सक्को भवंति भणिओ मुणिउं जेणाउयप्पमाणेणं । निगोयाणं पिवन्नणा जेण निद्दिट्ठा || ३९ ।। हरिणा हरिसियचित्तेण संधुओ जो तवो महासत्तो । जेण समयंमि ठवणा विहियागुणपक्खवाएणं ॥ ४० ॥ तं सूरिमज्जरक्खियमक्खयपयपावणंमि पाणीणं । पड़िहत्थमतुच्छमहं वंदे निद्दलियदुरिओहं ॥ ४१ ॥ वियि जिण समय सम्मय सुदेसणा जणिय जणमणाणंदा । अण्णे वि चरणगुणरयणजलहिणो जे जए जाया ॥ ४२ ॥ परवाइवारवारणं वियारणा जे मियारणो ( ? ) गुरुणो । ते सुगहिनामाणं सरणं मह हुतु पणयपया ॥ ४३ ॥ अन्नाणनीरपउरे सत्ता संसारसायरे पड़िया । करुणा हि विया जिण पवयण जाणवत्तंमि ॥ ४४ ॥ पालियसीलंगाणं संगहिय-समग्ग- समय-साराणं । चउदय-सय-पगरण- देसणेण संपन्न कीत्तीणं ॥ ४५ ॥ जिणसमय-संजयाणं मुद्धाकिरिया परूविया जेहिं । तेणमहं तेसि नमो हरिभद्द - मुणीसराणं पि ॥ ४६ ॥ आयार Jain Education International - वियारण-वयणचंदिमा-निहय-मोहतिमिरभरे । सीको हुण - नहंग मि हरिणंक- संकासो ॥ ४७ ॥ तं तिहुयण-पहुपय-कमल-जुयलभसलं भवारिविहियभयं । जीवाणमभयदामि पच्चलं निच्चलं वंदे ॥ ४८ ॥ सुपसत्थ- वीरजिण - तित्थ-संभवो भव्वजण मणोहरणो । सिरि-वद्धमाणसूरी जोगपसंगोतयं - वंदे ॥ ४९ ॥ पुरओ दुल्लह महिवल्लहस्स अणहिल्लवाडयपुरंभि । सुविहिय-विहार - पक्खो पयडीओ समय जुत्तीए ॥ ५० ॥ अपडिबद्ध विहारेण विहरिया जे पणट्ट पड़िवक्खा । ताणं जिणेसरसूरीण संपयं पणिवयामि पए ॥ ५१ ॥ सिरि-सूरिजिणेसर-वयणपंकए महुयर व्व जे लीणा । नाणगुणलद्धिनिलए आसाइय-समय-मयरंदा ॥ ५२ ॥ - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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