Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust
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२३७
युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
३. उस्सुत्तपओग्घाडणकुलयं
लिंगी जत्थ गिहि व्व देवनिलए निच्चं निवासी तयं, सुत्तेऽणाययणं न तत्थ उ जओ नाणाइवुड्डी भवे। निस्सानिस्स जिणिंदमंदिरदुगं तल्लाभहेउं तयं, सिद्धतम्मि पसिद्धमेव तहवी खिसंति ही बालिसा ॥१॥ चेइयमढेसु जइवेसधारया निच्चमेव निवसंति। तमणाययणं जइ सावगेहिं खलु वज्जणिज्जं ति ॥ २ ॥ उस्सुत्तदेसणाकारएहि केहिं तु वसइवासीहिं। पडिवोहिअसावयचेइयं पुमो होइऽणाययणं ।। ३ ॥ एयंमि हुस्सुत्तं पुण जुवइपवेसो निसाइ चेइहरे । रयणीए जिणपइट्ठा ण्हाणं नेवेज्जदाणं च ॥४॥ पूएइ मूलपडिमं पि साविया चिइनिवासि सम्मत्तं । गब्भापहारकल्लाणगंपिन हु होइ वीरस्स ।। ५ ॥ कीरइ मासविहारोऽहुणावि साहूहिं नत्थि किर दोसो। पुरिसित्थीओ पडिमा हवंति (वहंति) तत्थाइमा चउरो॥६॥ कंडुयसंगरियाओ न हुंति विदलंति विरुहगाऽणंतं । न य सिंचियवेराइ सच्चित्तं सिंधवो दक्खा ॥ ७॥ इरिआवहियं पडिकमिय जो जिणाईण पूयणाइ पुणो। कुज्जा इरियं पडिकमिय कुणइ कीकम्मदाणाई ।। ८॥ विधिचेझ्यनाम पि हु न जुत्तमेयं जमागमेणुत्तं । निस्साकडाइ जिणचेइयाइं लिंगीहि विजुयाइं ॥ ९ ॥ तित्तियमित्तं कुजा जित्तियमित्तं जलाइ भुंजिज्जा। अजियजलाहारगिही पाणागारे समुच्चरइ ।। १० ॥ उग्गए सूरे सूरुग्गमे य भणियम्यि नत्थि किर दोसो। एगजुगे जुगपवरा दस पंच हवंति न हु एगो।। ११ ।। वत्तीसं देविंदा चउसट्ठी नेय हुंति जिणपयडा। पूया अट्ठवियप्पा पाससुपासा न नवतिफणा ।। १२॥
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