Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 253
________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान २७. ऐसे जिनवल्लभसूरि बृहस्पति की तरह (प्रज्ञावान्) जगत् में युगप्रवर हुए । उनके चरणों में नमन करने वालो को जिनदत्त - जिनों का दिया हुआ - उत्तम पद प्राप्त हों । *** २३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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