Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 255
________________ २३८ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान खीरधएहिं ण्हाणं जिणपडिमाणं न काउं जुत्तमिणं। दव्वत्थओत्तिकाउं गिहीणमुचिआ जिणपइट्ठा ।। १३ ।। कत्तियऽमावासाए पच्छिमरयणी' वीरपडिमाए। कीरइ ण्हाणं पूया वाइयमहनट्टगीयं च ॥ १४ ॥ लइडारासो वि दिज्जइ विहिजिणभवणम्मि सावएहिं पि। सासणसुराणमंदोलणं च तत्थेव जलकीलं ।। १५ ॥ माहे मालारोवणमिह कीरंतं च साहए सिद्धिं । मालग्गहणे पहाणे जिणाण रयणी' को दोसो ? ॥ १६॥ ण्हवणयरसिहाबंधो मुद्दाकलसेसु वासखेवाइ। सूरी विणा पइ8 कुणइ य उस्सुत्तमाईयं ॥ १७ ॥ गिहिणोऽवि दिसाबंधो कीरंतो धम्मसाहगो होइ। चेइवसइनिवासी वि साहुवेसट्ठिया पूजा ॥ १८ ॥ जिणबिंबमणाययणं न होइ निवसंति ते जहिं स मढो। सो सुविहियसाहूहिं परिहरणिज्जो न य गिहीहिं ॥ १९ ॥ मेरुगिरिम्मि तियसाहिवेहिं जिणजम्मण्हाणमवि करियं । आरत्तियमुत्तारिय मंगलदीवं कयं नढें ।। २० ॥ आरत्तियमेगजिणिंदपडिमपुरओ कयं न निम्मल्लं । परिहाविज्ज्इ जेणं वत्थेणं तमवि निम्मलं ।। २१ ।। आरत्तियमुवरिजलं भामिज्ज्इ तह पयत्तओ पूअं । तम्मि य जमुत्तरते तदुवरि कुसुमंजलिक्खेवो ॥ २२ ॥ आरत्तियं धरिज्ज्इ जयंतरालेऽवि उत्तरंतं तु । कीरइं नट्टं गीयं वाइयमुर्वगीयं नट्टं च ॥ २३ ॥ जिणपुरओऽवि फलक्खयपमुहं जं ढोइयं तु पूयट्ठा। तमवि न कप्पइ निम्मल्लमित्थं काउं पुणो दाउं ॥ २४ ॥ कप्पइ न लिंगिदव्वं विहिजिणभवणम्मि सव्वहा दाउं। सासणसुराण पूया नो कायव्वा सुदिट्ठीहिं ॥ २५ ॥ पव्वजागहणुट्ठावणाइनंदीवि कीरइ निसाए। नेमिविवाहक्खाडयरहचलणा-राइमइसोगो ॥ २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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