Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 266
________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान विनत्य शान्तिं भवतीरराजितं विनत्य शान्तिर्भवतीरराजितः ॥ १४ ॥ इत्युद्दाममकामकामितफलान्यादातुकामः शमी सानन्दं पठति स्तवं शमशठोऽकुण्ठः सदा कर्मठः । या व्याजेन विनाऽनयोस्स जिनयोः पक्षादिपर्वस्वमुं स्वर्लब्ध्या जिनदत्तनम्रजनता शर्मास्तकर्मा भवेत् ॥ १५ ॥ इति श्रीमदजितशान्तिजिनस्तवनम् । ' 'जैन स्तोत्र सन्दोह' में से साभार उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only २४९ www.jainelibrary.org

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