Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust
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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
तह पाणाउं किरिया विसाल - मह लोग बिंदुसारं च । वाइय रायपसेणइज्ज जीवाभिगम नामं ॥ १४ ॥ पण्णवणोवंग सूरचंदपण्णत्ति जंबूपण्णत्ति । वंदामि निरियावलिया सुयखंधं चेह पंचण्हं ।। १५ ।। इह जे जिणवीरेणं सयं च पव्वाविया य सिक्खविया । तेहिं कथाई चउदस - सहसाणि पइण्णगाणं च ॥ १६॥ दसवेयालियमावस्सयं च तह ओह - पिंड - निज्जुत्तिं । पज्जुसणकप्प व कप्पकप्प पणकप्प जियकप्पो ॥ १७ ॥ वंदे महानिसीहं उत्तरज्झयणे वायगकयाणि । पसमरइ - पमुह- पयरण- पंचसयाई महत्थाणि ॥ १८ ॥ जुगपवरागम हरिभद्दसूरि - रइयाणि चउदस - सयाणि । सद्धम्म-सत्थ-मत्थयमणि-पयरण- पभिइ चित्ताणि ॥ १९ ॥ नंदिमणुओगदारप्पमुहं सुत्तं मित्थ सुमहत्थं ।
अत्थि सुपसत्थ- वित्थर भणण-समत्थं पसत्थं च ॥ २० ॥ आसज्जत मणवज्जं जुगपहाणागमेहिं सूरिहिं । गुणगणभूरीहिं कयं वंदे तं पयरणाई वि ॥ २१ ॥ जुगपवरगुरु- जिणेसरसूरीहिं अभयदेवसूरीहिं । सिरि-जिणवल्लहसूरीहिं विरइयं जमिह तं वंदे ॥ २२ ॥ कलिकाल - कुमुइणी-वणसंकोयणकारि सूरकिरण व्व । इह सुत्तासुत्त पयाव भासणुल्लासिणो जेसिं ॥ २३ ॥ ठाणठ्ठापट्टियमग्ग नासि संदेहि मोहतिमिरहरा | कुग्गविग्ग - कोसिकुल-कवलिय- लोयणा लोया ॥ २४ ॥ तेहिं पभासियं जंतं विहड़इ नेय घड़इ जुत्तीए । वंदे सुत्तं सुत्ताणुसारि संसारि-भय- हरणं ।। २५ ।। गुरु गणयल-पसाहण पत्तपहो पयड़ियासमदिसोहो ।
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सिपहसंदेहो कय भव्वंभोरुहविबोहो ॥ २६ ॥ सूरूव्व सूरि जिणवल्लहो य जाउ जए जुगपवरो । जिणदत्त गणहर पयं तप्पयपणयाण होइ फुडं ॥ २७ ॥
* इति विश्रुतश्रुतस्तव समाप्तं *
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