Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

Previous | Next

Page 240
________________ २२३ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान उद्धरिया जेण पयाणु-सारिणा गयण गामिणी विजा। सुमहापयन्नपुव्वाओ सव्वहा पसमरसिएणं ।। २५ ॥ सुररायचाय विज्जमभमुहा धणुमुक्कनयणवाणाए । कामगि-समीरण-विहिय-पत्थणा वयण-घडणाए ।। २६ ।। लढुंग-पईट्ठाए सिद्धिसुयाए विसिट्टचिट्ठाए। गुणगणसमणाओ जेसि दंसणुक्कंठियमणाए ।। २७ ।। निय-जणय-दिन-धण-कणग-रयण-रासीए जो न कण्णाए। तुच्छं पि मुच्छिओ जोव्वणे वि धणियं गुणट्ठाए ॥ २८ ॥ जलण-गिहाओ माहेसरीए कुसुमाणि जेण आणेउं । तच्च नीयाणमाणो मलियो संपुण्णई विहिया ॥ २९ ।। दुभिक्खंमि दुव्वालस-वारसीय-सीयमाण-संघमि। विज्जाबलेणमाणियमन्नं जेणन्नछिन्नाओ ।। ३० ।। नमह दसपुव्वधरं धम्मधराधरणसेसमणिविरियं । सिरि-वइरसामिसूरिं वंदे थिरयाइ मेरुगिरिं ॥ ३१ ॥ निय-जणणि-वयण-करणंमि उज्जओ दिट्ठिवाय-पढणत्थं । सुगुरु-समीवंमि गओ ढडर-सद्दाणुमग्गेणं ॥ ३२ ॥ सद्दाणुसारओ विहियं सयल-मुणि-वंदणो य जो गुरुणा। अकयाणुवंदणो सावयस्स एवं समणु भणिमो ।। ३३ ।। को धम्मगुरू तुम्हाणमेत्थ तेणावि विणय पणएणं। गुरुणो निदंसिओ सो ढड्डरसद्दो वियड्डेण ।। ३४ ॥ अकगुरु (?)निण्हवेणं सूरिसयासंमि जिणमयं सोउं परिविज्जिय सावजं पव्वजगिरि समारूढो ।। ३५ ।। सीहत्ता निक्खंतो सीहत्ताए विहरिओ जो उ। साहिय नवपुव्वसुओ संपन्न पसन्नसूरिपओ ॥ ३६ ।। सुरवरपहु बुद्धेणं महाविदेहमि तित्थनाहेणं । कहिउं निगोय-जीवाण जाणओ भारहे सूरी ।। ३७ ।। जस्स सयासे सक्को मोहणरूवेण पुच्छइ एवं । भयवं फुडमन्नेसिय मह केत्तियमाउयं कहसु ।। ३८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282