Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 239
________________ २२२ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान संपन्न - - वर - विवेयं जं गिहगय जंबुनाम - वयणाओ । पालिय पवज्जं तं प्रभवायरियं सया वंदे ॥ ११ ॥ कट्ठे हो परमेयं तत्तं न मुणिज्ज इत्तिसो ( ? ) सेभवं व विरत्तचित्तं नम॑सामि ॥ १२ ॥ संजणिय-पणय-रुद्दं जसभद्दं मुणिगणाहिवं सगुणं संभूयं सुह-संभूई - भायणं सूरिमणुसरिमो || १३ || जिण-समय-सिंधुणो पारगामिणो वर - विवेय- नावाए। सिरिभद्दबाहु-गुरुणो हियए नामक्खरे धरिमो ॥ १४ ॥ सोह णु थूलभद्दो लहइ सलाहं मुणीण मज्झमि । लीलाइ जेण हणिउंसरहेण य मयणमायाउ ॥ १५ ॥ कामपईव - सिहाए कोसाए बहु-सिणेह-भरियाए । घणदढजणपयगाई जीए जो सामिओ नेया ॥ १६ ॥ सोवि अपुव्व - पयंगेणं जयहरे सप्पहं पयासंती । पहिणिय - पहा विहिया मोह-महातिमिर हरणेण ॥ १७ ॥ तस पच्छिमं चउद्दसपुव्वीणं चरणनाणसरिसरणं । सिरिथूलभद्द समणं वंदेहं मत्त गय गमणं ॥ १८ ॥ विहिया अणिगूहिय - विरिय - सत्तिमा सत्तमेण संतूलणा । जे अज्ज महागिरिणा समइक्कते वि जिणकप्पे ॥ १९॥ तस्स गणिट्ठे लठ्ठे अज्जसुहत्थि जण पणयं । अवहत्थिय-संसारं सारं सूरिं च अनुसरिमो ॥ २० ॥ अज्जसमुदं गंभीरिमाए वंदे समुद्दगंभीरं । तह अज्जमंगुसूरि अज्जसुधम्मं च धम्मरयं ॥ २१ ॥ मण - वयण - काय - गो (गु?) भद्दगो (? गु) त-गणनाहं छम्मासिउविसजूवभावओ ( ? ) गहिय-पवज्जो ॥ २२ ॥ धणगिरिणो नंदाए तणओ णग (र) णहयरिंद-पहुपणओ पढमुप्पत्तिपयं पिव संवेग्गसिरीए संविग्गो ॥ २३ ॥ सिरिअज्जसीहगिरिणो गुरुणा विहिओ गुणानुरागेणं । सेसजईणं लहुओ विजो गुरु नाणदाणेणं ॥ २४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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