Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 234
________________ युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान चैत्यों में जाने से भव्यात्मा श्रावकों की ज्ञानवृद्धि नहीं होती है। (८) गणधर सार्धशतक में गौतम से लेकर श्री जिनवल्लभसूरि तक गणधरों के गुणों का निरूपण है । जैसा कि ग्रन्थ के नाम से प्रतीत हो रहा है। इसमें कुल १५० गाथाएँ है । २१७ (९) गणधर सप्ततिका में गणधरों की स्तुति की गयी है । गणधर सार्धशतक और गणधर सप्ततिका में कोई विशेष अन्तर नहीं है। (१०) विघ्नविनाशी स्तोत्र में जिन धर्मानुयायी संघ के विघ्नविनाश तथा मंगल प्राप्ति के लिए स्तम्भन पूजित श्री पार्श्वनाथ से अनिष्ट विनाशक श्री वर्धमान, गौतम स्वामी, सुधर्मा स्वामी आदि गणधरों से इन्द्रादि देवताओं से अप्रतिचक्रा आदि प्रमुख शासनदेवियों से सत्यपुर निवासी वर्धमान स्वामी जिन भक्त ब्रह्मशान्तियक्ष से, चक्रेश्वरी से अन्य क्षेत्रादि स्थानों में रहनेवाले देवी-देवताओं से तीर्थपति वर्धमान सूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि एवं जिनवल्लभसूरि आदि से तीर्थ वृद्धि के लिए भी प्रार्थना की गयी है । (११) सर्वाधिष्ठायी स्तोत्र नामक ग्रन्थ में गणधरों देवताओं, षोडश विद्यादेवियों, यक्षिणी गौमुख मातङ्ग गजमुख आदि यक्षों, चक्रेश्वरी वैराट्या आदि २४ शासन देवियाँ, दस दिक्पालों, क्षेत्रपालो, नक्षत्रसहित नव ग्रहों तथा धरणेन्द्र शक्रादि से संघ के अमंगलनाश तथा मंगललाभ के लिए प्रार्थना की गयी है । - (१२) सुगुरु पारतन्त्र्य नामक ग्रन्थ में सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र्य इन तीन रत्नों की तरह विधि विषय तथा सुगुरु पारतन्त्र्य को भी मोक्ष का अंग माना गया है और यह भी बताया गया है गुरु पारतन्त्र्य स्वीकार करने से ही मनुष्य को जय प्राप्ति हो सकती है । (१३) श्रुतस्तव में गणधरों एवं अन्य आचार्यों द्वारा विरचित शास्त्रों का निरूपण किया गया है। इसमें जैन सिद्धान्तों का सम्यक् रूप से वर्णन किया गया है। इसके अलावा अन्य सूरियों द्वारा विरचित ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। (१४) महाप्रभावक स्तोत्र प्राकृत भाषा में रचित स्तोत्रावलि है। इसमें विभिन्न प्रकार के ज्वर और अन्य विभिन्न प्रकार की व्याधियों को दूर करने की प्रार्थना की गयी है। इससे ज्वरों के प्रकार का पूर्ण ज्ञान भी होता है । (१५) सर्वजिन स्तुति में ग्रन्थकार ने श्री ऋषभादि २४ वर्तमान जिनों की स्तुति की है। उनकी स्तुतियाँ प्रजा के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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