Book Title: Jinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Author(s): Smitpragnashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 224
________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान २०७ था। प्रमाद मत करो, दूसरो का परोपकार करो। हर पल दूसरों की अच्छाई में लगे रहों । ऐसा सुन्दर आचरण करनेवाला ही मानव जीवन की कीमत कर सकता है। वह संसार समुद्र से तिर सकता है। अतएव मनुष्य जीवन थोड़ा है उसे गुरुभक्ति और मानवसेवा करके सफल बनाना चाहिए। सद्गृहस्थों के जीवनयापन का संदेश देते हुए लिखते हैं कि जहिं घरि बंधु जुय जुय दीसइ तं घरु पडइ वहंतु न दीसइ। जं दढबंधु गेहु तं वलियउ जडि भिज्जतउ सेसउ गलिउ ॥२६॥ *** कज्जउ करउ बुहारी बद्धी सोहइ गेहु करेइ समिद्धी। जइ पुण सा वि जुयं जुय किज्जइ ता किं कज्ज तीए साहिज्जइ? ॥२७॥ परिवार की एकता पर बल देते हुए लिखते हैं कि जिस घर में बन्धु लोग अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं वह घर सम्पन्न न रहकर गिर जाता है। और जहाँ लोग एकाग्र होकर रहते हैं वहाँ बल पौरुष एवं स्थिरता रहती है। इस प्रकार सद्गृहस्थों को चाहिए कि वे अपने परिवार में प्रेमपूर्व एवं परस्पर सौहार्द से रहें । संयुक्त परिवार में जीवन व्यतीत करना चाहिए। जिस घर में बान्धव अलग-अलग रहे हैं, वैचारिक विषमता रहती है । वह घर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । अर्थात् वह घर बिखर जाता है। इस प्रकार समाज की तत्कालीन परिवार व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए एकता पर आचार्यश्री ने खूब जोर लगाया है। किसीने ठीक ही कहा है Unity is strength. अथवा संघे शक्ति: कलौ युगे॥ इसी प्रकार यहीं पर आचार्यश्री ने संयुक्त परिवार को बंधी हुई बुहारी की उपमा दी है। बंधी हुई बुहारी के द्वारा घर को साफ किया जा सकता है। घर को साफ समृद्ध एवं सुसम्पन्न बनाया जा सकता है। परन्तु यदि बुहारी का एक-एक तिनका अलग हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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