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जिन सिद्धान्त ]
प्रश्न --- कर्म का स्थिति पूरी होने से फल देकर श्रात्मा के प्रदेश से अलग हो जाना उसी का नाम सविपाक निर्जरा है ।
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प्रश्न --- सविपाक निर्जरा आत्मा के पांच भावों में से कौन से भाव में होती है ?
उत्तर -- सविपाक निर्जरा श्रदयिक भाव में होती है अर्थात् कर्म का उदय सो कारण है और तद्रूप आत्मा की अवस्था होना उसी का नाम श्रदयिक भाव है । समय समय में कर्मका फल देकर अलग हो जाना ये सविपाक निर्जरा है । यह सब संसारी जीवों के समम २ होती है ।
प्रश्न - अविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर --- जो कर्म की स्थिति का काल पूरा हुए पहले आत्मा के विशुद्ध परिणाम द्वारा आत्मा के प्रदेश से कर्म को अंश २ में अलग कर देना उसीका नाम श्रविपाक निर्जरा है ।
प्रश्न - अविपाक निर्जरा किस भाव से होती हैं ?
उत्तर --- विपाक निर्जरा क्षयोपशमिक भाव से होती
आत्माका भाव कारण
है अर्थात् etat Hta are है और जो कर्मसत्ता में धे उन्हें काल की मर्यादा के पहले अलग कर देना चो कार्य हैं।