Book Title: Jina Siddhant
Author(s): Mulshankar Desai
Publisher: Mulshankar Desai

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Page 181
________________ जिन जात] ___ उत्तर---पहले गुणस्थान में जो ११७ प्रकृतियों का बंध होता है, उसमें से १६ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होने से १०१ प्रकृतियों का बंध सासादन गुणस्थान में होता है। ये १६ प्रकृति इस प्रकार हैं-१ मिथ्यात्व, २ हुण्डक संस्थान, ३ नपुंसक वेद, ४ नरक्रगति, ५ नरकगत्यानुपूर्वी, ६ नरकवायु, ७ अंसप्राप्तामृपाटक संहनन, ८ एकेन्द्रिय जाति, ६ दोइन्द्रियजाति, १० तेइन्द्रियजाति, ११ चौइन्द्रिय जाति, १२ स्थावर, १३ आताप, १४ सूक्ष्म, १५ अपयोप्त १६ साधारण । प्रश्न-व्युच्छित्ति किसे कहते हैं ? उत्तर---जिस गुणस्थान में कर्म प्रकृतियों के बंध, उदय अथवा सत्व की व्युच्छित्ति कही हो उस गुणस्थान तक ही इन प्रकृतियों का बंध उदय अथवा सत्त्व पाया जाता है ,आगे के किसी भी गुणस्थान में उन प्रकृतियों का धंध, उदय अथवा सत्व नहीं होता है, इसी को व्युच्छित्ति प्रश्न----सासादन गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ? उत्तर---पहले गुणस्थान में जो ११७ प्रकृतियों का होता है, उनमें से मिथ्याच, आताप, सूक्ष्म, अपयोप्त और साधारण इन पांच मिथ्यात्व गुणस्थान की व्युच्छिन्न

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