Book Title: Jina Siddhant
Author(s): Mulshankar Desai
Publisher: Mulshankar Desai

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Page 180
________________ [जिन सिद्धान्त ___ उत्तर--सम्यक्त्व के तीन भेद हैं, दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृति, अनन्तानुबंधी की ४ प्रकृति, इस प्रकार इन सात प्रकृतियों के उपशम होने से जो भाव उत्पन्न हो उसको उपशम सम्यक्त्व कहते हैं। और इन सातों प्रकृतियों के क्षय होने से जो भाव उत्पन्न हो उसे क्षायिक सम्यक्त्व कहते हैं और छह प्रकृतियों के अनुदय और सम्यक् प्रकृति के उदय से जो भाव हो उसे बायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । उपशम सम्यक्त्व के दो भेद हैं। १ प्रथमोपशम सम्यक्त्व, २ द्वितीयोपशम सम्यक्त्व । अनादि मिथ्यादृष्टि के पांच प्रकृति के और सादि मिथ्यादृष्टि के सात प्रकृतियों के उपशम से जो भाव हो उसको प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं । प्रश्न--द्वितीयोपशम सम्यक्त्व किसे कहते हैं। __ उत्तर-सातवें गुणस्थान में क्षयोपशमिक सम्प दृष्टि जीव श्रेणी चढ़ने के सन्मुख अवस्था में अनन्तानुबंधी चतुष्टय का विसंयोजन (अप्रत्याख्यानादि रूप ) करके दर्शन मोहनीय की तीनों प्रकृतियों का उपशम करके जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है उसे द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहते हैं। प्रश्न--सासादन गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध होता है ?

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