Book Title: Jina Siddhant
Author(s): Mulshankar Desai
Publisher: Mulshankar Desai

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Page 182
________________ १७४ [ जिन सिद्धान्त प्रकृतियों के बढ़ाने पर ११२ रही, परन्तु नरकगत्यानुपूर्वी का इस गुणस्थान में उदय नहीं होता इसलिये इस गुणस्थान में १९११ प्रकृतियों का उदय होता है। प्रश्न -- सासादन गुणस्थान में सत्ता कितनी प्रकृतियों की रहती है ? 1 उत्तर --- १४५ प्रकृतियों की सत्ता रहती है | यहाँ पर तीर्थकर प्रकृति, अहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियों की सत्ता नहीं रहती । प्रश्न – तीसरा मिश्र गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर – सम्यक् मिथ्याच प्रकृति के उदय से जीव के न तो केवल सम्यक् परिणाम होते हैं और न केवल मिथ्याच्च रूप परिणाम होते हैं, किन्तु मिले हुए दही गुड़ के स्वाद की तरह मिश्र परिणाम होते हैं उसे मिश्र गुणस्थान कहते हैं । प्रश्न - मिश्र गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध होता है ? उत्तर - दूसरे गुणस्थान में बंध प्रकृति १०१ थी, उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया लोभ, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, न्यग्रोधसंस्थान, स्वातिसंस्थान, कुञ्जक संस्थान, वामनसंस्थान, ब्रजनाराचसंहनन, नाराचसंहनन,

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