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जिन सिद्धान्त ]
(२६) शुभग (३०) सुस्वर (३१) आदेय (३२) निर्माण ( ३३ ) तीर्थंकर (३४) हास्य (३५) रति (३६) भय (३७) जुगुप्सा (३८) संज्वलन क्रोध (३६) मान (४०) माया (४१) लोभ (४२) पुरुष वेद (४३) मतिज्ञानावरण (४४) श्रुतज्ञानावरण (४५) अवधिज्ञानावरण (४६) मन:पर्ययज्ञानावरण (४७) केवलज्ञानावरण (४८) चक्षु दर्शनावरण (४६ ) अचक्षुदर्शनावरण (५०) अवधि दर्शनावरण (५१) केवल दर्शनावरण (५२) दानान्तराय (५३) लाभान्तराय (५४) मोगान्तराय (५५) उपभोगान्त - राय (५६) वीर्यान्तराय (५७) यशः कीर्ति (५८) उच्चगोत्र इन प्रकृतियों का बंध पडता है ।
प्रश्न --- इन प्रकृतियों के बंध में कारण कार्य सम्बन्ध कैसा है ?
उत्तर -- संज्वलन कषाय का मंद उदय सो कारण, तद्रूप आत्मा का भाव होना सो कार्य आत्मा का मंद कपाय रूप भाव सो कारण और ५८ प्रकृतियों का वन्ध पडना सो कार्य ।
प्रश्न - लेश्या के कारण से किन किन प्रकृतियों का बंध पडता है ?
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उत्तर -- एक साता वेदनीय कर्म का चन्ध पडता है, क्योंकि मिथ्याल, असंयम और कपाय इनका अभाव