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जिन सिद्धान्त भाव उदीरणा कही जाती है। भाव उदीरणा में भाव प्रधान है निमित्त गौण है।
(२) दो पुरुप बैठे हैं, वहाँ से एक स्त्री सरल भाव से जा रही है । तब एक पुरुष ने उस स्त्री को देखकर विकार उत्पन्न किया । विकार हुए बाद वह पुरुष कहेगा कि इस स्त्री को देखकर मुझमें विकार उत्पन्न हुआ जब कि दूसरा पुरुष कहता है कि स्त्री को मैंने देखा है मगर उसने विकार कराया नहीं। मेरे लिये मात्र हेय है और आपने स्वयं अपराध किया है ऐसा अपराध कर जहाँ जहाँ निमित्त बनाया जाता है ऐसे सम्बन्ध का नाम निमित्त उपादान सम्बन्ध है अर्थात् भाव उदीरणा है । भाव उदीरणा में भाव हुए बाद ही निमित्तका आरोप पाता है । निमित्त उपादान सम्बन्ध में उपादान में जैसी अवस्था होती है ऐसी निमित्त में नहीं होती है । उपादान उपदान ही रहता है और निमित्त निमित्त ही रहता है । परन्तु निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध में दोनों में समान अवस्था होती है एवं दोनों एक क्षेत्र में ही रहते हैं। निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध में दोनों निमित्त भी हैं और दोनों नैमित्तिक भी हैं।
प्रश्न-नोकर्म राग कराता नहीं है परन्तु आत्मा स्वयं अपराध करता है, ऐसा कोई आगम का वाक्य है ?