Book Title: Jina Siddhant
Author(s): Mulshankar Desai
Publisher: Mulshankar Desai

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Page 145
________________ जिन सिद्धान्त उत्तर-व्यवहारनय के अनेक भेद हैं तो भी चार भेद में गर्मित है--(१) सद्भूत-व्यवहार (२) असद्भूतव्यवहार (३) असद्भुत-अनउपचरित-व्यवहार (४) असद्भूत-उपचरित-व्यवहार । प्रश्न-सद्भूत-व्यवहार नय किसे कहते हैं ? उत्तर--पदार्थ में जो गुण तथा पर्याय नित्य रहने वाला है वह उस पदार्थ का कहना ही सद्भूत व्यवहार है, जैसे दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तथा केवलज्ञान, वीतरागता, जीव की कहना। प्रश्न--असद्भूत व्यवहारनय किसे कहते हैं ? उत्तर--पदार्थ में जो पर्याय विकारी अनित्य रहने वाली है उस पर्याय को उस द्रव्य की कहना असद्भुत व्यवहारनय है, जैसे क्रोधादिक तथा मतिज्ञानादिक जीव का कहना। प्रश्न- असद्भूत अन-उपचरित व्यवहारनय किसे कहते हैं ? उत्तर--मिले हुए भिन्न पदार्थ को अभेद रूप कहना उसे असद्भूत अन-उपचरित व्यवहार नय कहते हैं। • जैसे "यह शरीर मेरा है"। प्रश्न-असद्भूत उपचरित व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

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