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जिन सिद्वान्त
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प्रकार १२० प्रकृति का बन्ध रुक जाने से आत्मा का लघुकाल में मोक्ष हो जाता है।
प्रश्न-कर्म प्रकृति १४८ हैं और बन्ध के कारण १२० प्रकृति कही तब २८ प्रकृति की क्या हो ? ___ उत्तर--स्पर्शादिक २० प्रकृति का जगह चार प्रकृति का ग्रहण किया गया है जिस कारण १६ प्रकृति कम हो गई तथा पांच बन्धन तथा पांच संघात प्रकृति का ग्रहण पांचों शरीर में समावेश करने से दस प्रकृति का यह धन्ध कम हुआ और दर्शन मोहनीय की सम्पमिथ्यात्व तथा सम्यक्प्रकृति मिथ्यान्व ये दो प्रकृति का बन्ध नहीं पड़ता है, इस प्रकार १६+१०+२ मिलकर २८ प्रकृति का बन्ध में गिनती नहीं किया गया है ।
प्रश्न--निर्जरा तत्त्व किसको कहते हैं ?
उत्तर--निर्जरा दो प्रकार की है (१) चेतन निर्जरा, (२) जड़ निर्जरा ।
प्रश्न--चेतन निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर-मिथ्यात्व का संवर हुए बाद में अंश अंश में इच्छाओं का नाश करना उसीका नाम चेतन निर्जरा है।
प्रश्न-मिश्यादृष्टि जीव के चेतन निर्जरा होती है या नहीं ?