Book Title: Jin Shatakam Satikam Author(s): Lalaram Jain Publisher: Syadwad Ratnakar Karyalay View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूचना । पाठक महाशय ! यह ग्रंथ सर्वसाधारणको रुचिकर व विशेष उपयोगी नहीं होगा इसकारण स्याद्वादग्रंथमालामें प्रकाशित करना लाभदायक न समझकर भी इसे सबसे पहिले इसलिये प्रकाशित किया है किजब स्वामिसमन्तभद्राचार्य महाराजको महाभस्मक व्याधि होगई थी उस समय फिरते २ यहां आकर काशीके प्रसिद्ध शिवभक्त शिवकोटी महाराजके शिवालयमें पुजारी बनकर शिवनिर्माल्यके सेवनसे भस्मकव्याधि रोगकी निवृत्ति कियी थी । जब काशीनरेशको इनके शैव होनेमें संदेह हुवा तो इनको अपने सामने शिवमूर्तिको नमस्कार करनेकी आज्ञा दी तब आचार्य महाराज भी स्वयंभूस्तोत्र रचकर स्तुति करनेलगे । जब अष्टमतीर्थकर श्रीचंद्रप्रभकी स्तुति करते समय शिवमूर्ति फटकर उसमेंसे रत्नमयी चंद्रप्रभ भगवानकी मूर्तिका आविर्भाव हुवा तब उन्होंने नमस्कार किया और शिवकोटि महाराजप्रभृति हजारों शिवभक्तोंको जिनभक्त बनाकर शिष्य किया । उस स्वयंभूस्तोत्रके पश्चात् ही आचार्य महाराजने यह जिनशतक नामकी स्तुतिविद्या प्रत्येक श्लोक मुरजादिचक्रबद्ध रचकर चित्रकाव्यका पांडित्य दिखाया है । स्याद्वादग्रंथमालाका प्रादुर्भाव इस पवित्र जैनतीर्थसे होनेके कारण काशीके इतिहासप्रसिद्ध उक्त आचार्यकृत इस ग्रंथको पवित्र मंगलमय समझकर हमने इसे मंगलाचरण स्वरूफ सबसे प्रथम प्रकाशित किया है । आशा है कि आप इस पूज्य काव्यको विनयसहित ग्रहणकरके हमारे इस प्रथम परिश्रमको सफल करेंगे। ___ इस ग्रंथकी एक ही प्रति जयपुर नगरसे प्राप्त हुई थी उसीपरसे ही इसका संपादनकार्य हुवा है, दूसरी प्रतिकी सहायता नहीं मिली । इसके सिवाय यदि नये प्रेसके नये २ कर्मचारियोंकी तथा हमारे दृष्टि दोषसे अशुद्धियां रही हो तो विद्वजन संशोधनपूर्वक पढ़कर इस प्रमादको क्षमा करेंगे। काशी। प्रकाशक । For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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