Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 8
________________ प्रस्तावना/4 पीछे हैं एवं वर्तमानता है इत्यादि का गया है। दि राजचन्द्र के उद्गार, सम्यग् दर्शन, गुणस्थान, अनेकान्त एवं स्याद्वाद आदि सभी वर्गों के लिये उपयोगी ग्यारह लेख दर्शन भाग में हैं। सभी वर्गों के लिए उपयोगी दस लेख आचार-व्यवहार भाग में सम्मिलित हैं। जो साम्प्रदायिकता, सुसंस्कार-अनेकान्त दृष्टि से, शाकाहार, मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है, हैं। गांधीजी की अहिंसा आधारित राजनैतिक, सामाजिक क्रांति, गुणानुराग, मेडकाऊ, बर्डफ्लू (Madcow disease bird flu, Dengue flu) बीमारियों से कत्ल, आरोपित गायों, मुर्गियों का कत्ल, गुणानुराग, जैन साहित्य का विश्व पर प्रभाव आदि हैं। अन्त में जैन दर्शन और विज्ञान कहाँ तक समकक्ष, आगे या पीछे हैं एवं वर्तमान विश्व के लिये इन दोनों की एक दूसरे के पूरक रूप में आवश्यकता है इत्यादि का इस ग्रंथ में दोनों भाषा हिन्दी व अंग्रेजी में उल्लेख किया गया है। विज्ञान की नवीनतम्खोजों ने जैन दर्शन के हजारों वर्ष पूर्व घोषित सृष्टि के रचयिता, रचना, अणु-परमाणु, अनेकांत, जीव विकास पर बहुत हद तक समानता पायी है। विज्ञानानुसार सूक्ष्मतम जीव बेक्टीरिया, फफूंद के जीव, वायरस, प्रोटोजोआ आदि भी लाभप्रद एवं हानिप्रद हैं। इनसे ही दूध से दही बनता है। पेन्सीलिन व अन्य प्रभावी दवाएँ बनती हैं। हमारी ऐतिहासिक उपलब्धियों के बारे में सामान्यतः अज्ञानता है। अतः संक्षेप में यह लेख उसकी पूर्ति कर सकेगा। 'पोरवाल, ओसवाल और श्रीमाल' की उत्पत्ति के लेख में ये जातियाँ जैनियों में वास्तव में एक ही गुरु-शिष्य द्वारा बनाई गयीं थीं, ऐतिहासिक प्रमाणों से दर्शाया है। नवकार महामंत्र के संदर्भ में इस महामंत्र की विशिष्टता को गहराई से पन्द्रह पृष्ठों में दर्शाया गया है। दर्शन के स्त्रोत गुण-स्थान, सम्यक-दर्शन, प्रतिक्रमण-सूत्र, विश्वस्तरीय-जैन-साहित्य का उल्लेख, महावीर के जीवन के मार्मिक प्रसंग, श्रीमद् राजचन्द्र के उद्गार आदि लेखों में जैन

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