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पैतालीस आगम
१० प्रकीर्णक
११ अंग
१२ उपांग
६ छेद सूत्र - १. व्यवहार । २. बृहत्कल्प । ३. जीतकल्प ४. निशीथ । ५. महानिशीथ । ६. दशा श्रुतस्कन्ध ।
६ मूल सूत्र - १. दशवैकालिक । २. उत्तराध्ययन । ३. नन्दीसूत्र | ४. अनुयोग द्वार । ५. आवश्यक निर्युक्ति । ६. पिण्ड - नियुक्ति ।
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बत्तीस आगम११ अंग
१२ उपांग
४ मूल सूत्र - १. दशवैकालिक । २. उत्तराध्ययन ३. नन्दी सूत्र । ४. अनुयोग द्वार ।
४ छेद सूत्र - १. व्यवहार । २. बृहत्कल्प । ३. निशीथ । ४. दशा श्रुतस्कंध |
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३२ वां आवश्यक
जैनागम निर्देशिका के प्रकाशन की पृष्ठभूमि
विश्व के भाषा-साहित्य में प्राकृत भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है, प्राकृत भाषा साहित्य के प्रकाशन की स्थिति ऐसी नहीं है और जैनागमों के प्रकाशन की स्थिति देखकर तो मन में ऐसा लगता है कि समाज का साक्षर एवं सम्पन्न वर्ग प्रवचन प्रभावना के प्रमुख अंग आगम साहित्य को प्रमुख न मानने की भयंकर भूल कर रहा है, क्योंकि भगवान महावीर ht fasaneerणकारिणी वाणी का प्रचार व प्रसार जैनागमों के विश्व
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