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( २५ ) प्राप्त सूचनाओं का उपयोग द्वितीय संस्करण में अवश्य किया जायगा। प्रस्तुत पुस्तक में कई कमियाँ रह गई हैं जिनका अब मैं स्वयं अनुभव कर रहा हूं फिरभी ऐसी कई भूलें हो सकती हैं, जिनकी ओर मेरा ध्यान न गया हो।
ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां । जानन्तु ते किमपि तान् प्रति नैष यत्न :॥
विनम्र श्रुत सेवक मुनि कन्हैयालाल “कमल"
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