Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 7
________________ प्रारंभिका जगत के दर्शन समुदाय मे जैन-दर्शन का विशिष्ट एव महत्वपूर्ण स्थान है। जैन-दर्शन बाह्य की नहीं, अन्तस् की प्रेरणा देता है। पर की नही, स्व की शोध कराता है। भौतिक पदार्थो का नही, आत्मा का रहस्य उद्घाटित करता है । जैन-दर्शन की गहराई मे प्रवेश करने वाले को स्तोक ज्ञान भी आवश्यक है। भिन्न-भिन्न विपयो के विशेष दृष्टि द्वारा किये गये वर्गीकरण को स्तोक कहते है। इन स्तोको को जैनागम सागर से मथन प्राप्त सुधा कहे तो भी अतिशयोक्ति नही है। जैनागम स्तोक सग्रह का यह संशोधित एव परिवद्धित संस्करण है। पहले की अपेक्षा इसमे कुछ स्तोक बढाये भो गये है। इस स्तोक संग्रह में जहाँ नवतत्व, पच्चीस बोल आदि ज्ञान की प्रारम्भिक जानकारी वाले स्तोक है, वहाँ लोक-परिचयात्मक १४ राजूलोक, नरक, भवन पति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक आदि के परिचयात्मक स्तोक भी है। गर्भ-विचार, छ आरे, नक्षत्र एव विदेश गमन जैसा मनोरंजक विषय भी है। तो गुणस्थान, कर्म-विचार, चौबीस दण्डक, पुद्गल परावर्त, गतागत, वडा बासठिया जैसेगम्भीर चिन्तन प्रधान-विषय भी है। जैनागम स्तोक सग्रह समाज में इतना लोक-प्रिय रहा है कि इसी का गुजराती अनुवाद भी निकला और गुजराती समाज मे बहुत

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